तमाम सामाजिक संगठन, दलित संगठन और दलित समाज से जुड़े लोगों ने दो अप्रैल को भारत बंद का ऐलान किया है। इनका आरोप है कि SC-ST अत्याचार निरोधक अधिनियम को कमजोर किया गया है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए।

कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता दो अप्रैल को देशभर में विरोध प्रदर्शन करने वाले हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अपनी फेसबुक डीपी बदलकर इस प्रदर्शन का समर्थन किया है।

बता दें कि 30 जनवरी 1990 से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था। इस एक्ट के तहत उन तमाम लोगों पर कार्रवाई होती थी जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को अपमानित करते, सामाजिक बहिष्कार करते, मारपीट, आदि करते है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो पुलिस उस शख्स को तुरंत गिरफ्तार कर लेती है। इस केस में किसी तरह की अग्रिम जमानत नहीं मिलती है। गिरफ्तारी के बाद जमानत निचली अदालत नहीं दे सकती है, सिर्फ हाई कोर्ट ही जमानत दे सकती है। इसके अलावा किसी शख्स की गिरफ्तारी के 60 दिन के अंदर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होती है। चार्जशीट दाखिल होने के बाद पूरे मामले की सुनवाई विशेष अदालत में होती है, जो एससी-एसटी के मामलों की सुनवाई के लिए बनी होती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद…

इस एक्ट के तहत दायर मामलों में गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था। नए फैसले के बाद अग्रिम जमानत लेना मुमकिन हो जाएगा।

मौजूदा कानून के तहत दर्ज मामलों में अगर आरोपी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी है, तो उसे नियुक्त करने वाले की सहमति के बिना उसकी गिरफ्तारी नहीं होगी।

अगर आरोपित व्यक्ति सरकारी कर्मचारी नहीं है, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए एसएसपी स्तर के अधिकारी की मंजूरी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस धारा के तहत कोई शिकायत आने पर सात दिनों के अंदर डीएसपी द्वारा शुरुआती जांच कर ली जाए ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति न फंसे।

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