पूरी दुनिया से जब विकास और नए-नए अविष्कार की खबरें आ रही हैं ऐसे दौर में हमारा देश सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा है। देश के कई राज्य दंगों से जूझ रहे हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल में पिछले चार दिनों से सांप्रदायिक हिंसा जारी है, जिसमें अबतक कई जानें जा चुकी हैं। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मौजूदा दौर में हमारा देश सांप्रदायिक दंगों का चैंपियन बन गया है।

धार्मिक जुलूसों में अब श्रद्धालुओं की जगह दंगाई नज़र आते हैं। वो जुलूस जो कभी आपसी भाईचारे का पैग़ाम पूरी दुनिया को दिया करते थे आज वही जुलूस हत्यारे हो चले हैं। वो जुलूस जो कभी गंगा-जमुनी तहज़ीब के साक्षी थे आज वही जुलूस जिस जगह से निकल जाते हैं वह इलाके नफ़रत और तबाही की गवाही देते नज़र आते हैं।

ऐसे में इन जुलूसों की पड़ताल ज़रूरी है। क्या यह वही जुलूस हैं जिन्हें आपसी सौहार्द की मिसाल के तौर पर देखा जाता था, या फिर इन जुलूसों में कुछ बदलाओ हुए हैं। जब हम इन जुलूसों पर नज़र डालते हैं तो इन जुलूसों में आम लोगों के साथ ही बड़े सियासी रहनुमा भी नज़र आते हैं। वह लोग नज़र आते हैं जो कभी साझा विरासत के क़ायल नहीं रहे।

जुलूसों को उन रास्तों से निकाला जाता है जहां से निकाले जाने की अनुमति नहीं होती। एसे में यह नतीजा निकालना मुश्किल नहीं कि इन जुलूसों का मक़सद दंगे को भड़काकर सियासत को चमकाना है। देश के नौजवानों को असल मुद्दों से भटकाकर हिंदू-मुसलमान में उलझा देना है।

इसे समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं। देश में चुनावों का माहौल है। लोकसभा से पहले कई राज्यों में चुनाव होने हैं। और ऐसा कहा जाता है कि दंगों की सियासी ज़मीन पर वोटों की फसल अच्छी होती है। दंगों का इस्तेमाल सरकारें अक्सर सवालों से बचने के लिए भी करती हैं। वह सवाल जो उनके कामों को लेकर होते हैं।

अब बात हम केंद्र की मोदी सरकार की करें तो सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले देश की जनता से कई वादे किए थे, जो अभी तक पूरे होते नज़र नहीं आ रहे। मोदी सरकार अपने वादों को लेकर विपक्ष के निशाने पर रही है। लोकसभा चुनावों में ज़्यादा वक्त नहीं बचा और सरकार वादों को लेकर कटघरे में खड़ी है।

सरकार को इन मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किसी मास्टरस्ट्रोक की ज़रूरत है। ऐसे में देश में हो रहे इन दंगों को सरकार के मास्टरस्ट्रोक के तौर पर भी देखा जा रहा है। विपक्ष लगातार इन दंगों के लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है। सोशल मीडिया पर भी लोग इसी ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि बीजेपी इन आरोपों को बेबुनियाद बता रही है।

बीजेपी भले ही इन आरोपों को बेबुनियाद बता रही हो लेकिन बिहार से लेकर बंगाल हिंसा तक दंगे भड़काने के मामले में जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है उनमें बीजेपी नेताओं का नाम भी शामिल है। इसीलिए आज हम अपने देश के नेताओं से ये पूछना चाहते हैं क्या चुनाव जीतने के लिए सिर्फ नफ़रत ही एक तरीका बाकी रह गया है?

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