जैसे बिना मुर्गा के बांग दिए भी सुबह होती है, ठीक उसी तरह बिना कैलाश सत्तार्थी जैसे कथित समाजसेवियों के बिना भी बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं। क्योंकि और भी संस्था और लोग हैं लेकिन फिर भी लॉबिंग वाली इस दुनिया ने कैलाश सत्यार्थी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया है। इसलिए मासूम भारतीयों को उनके प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है।

भारत में जब भी बच्चों के साथ कुछ होता है तो लोगों को इंतजार रहता है कि कैलाश सत्यार्थी कुछ बोलें, हालांकि वो अब भारत के बारे में ज्यादा कुछ बोलने वाले नहीं हैं। फिर भी लोगों को इंतजार रहता है। पिछले कई दिनों से आठ साल की आसिफा के साथ हुए गैंगरेप का मामला सुर्खियों में है।

लगातार तीन दिनों से सोशल मीडिया पर #JusticeforAsifa ट्रेंडिंग है। कैलाश सत्यार्थी भी लागातार सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और अपने उपर बनी डॉक्यूमेंट्री का प्रमोशन वगैरा कर रहे हैं। लेकिन उनकी तरफ से आसिफा को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी।

आज जैसे ही पीएम मोदी ने कठुआ गैंगरेप को लेकर दुख जताया , पता चला कि अब कुछ बोल देने में साहब और भक्तों के नज़रों में बुरा नहीं बनूँगा तब कैलाश सत्यार्थी भी जाग गए। उन्हें भी याद आ गया कि वो भारतीय हैं और भारत में एक आठ साल की बच्ची से आठ दिनों तक गैंगरेप हुआ है।

शायद इससे पहले कैलाश सत्यार्थी ये निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि इस मामले पर बोलना है या नहीं। सोच रहे होंगे कि कही ज्यादा बोलने की वजह से ‘भारत रत्न’ पर आंच न आ जाए?

आसिफा के साथ गैंगरेप तो जनवरी में हुआ था लेकिन चार्जसीट तैयार होने के बाद एक बार फिर घटना सुर्खियों में आ गया। हां, तो अब कैलाश सत्यार्थी जाग चुके हैं और लगातार ट्वीट कर रहे हैं।

बता दें कि कैलाश सत्यार्थी को साल 2014 में बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। 2014 वही साल है जब भारत की आम जनता कई बदलावों के सपने देख रही थी।

इन सपनों का सौदागर था एक चमत्कारी युग पुरूष ‘नरेंद्र मोदी’, अच्छे दिन के रथ पर सवार होकर आयी नई सरकार से जनता को बहुत उम्मीदें थी। ख़ैर, अब उम्मीदों के बक्से से सपनों राख बाहर आ चुका है।

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