अंतर्राष्ट्रीय महिला दीवस एक ऐतिहासिक दिन है जिसे हर साल खूब गर्मजोशी के साथ मनाया जा रहा हैं, और मनाया भी क्यों न जाये महिलाओं के सालों साल संघर्ष  के बाद उन्हे नागरिक होने, जीने का, प्यार करने, माॅ, बहन, बीवी, और तमाम रिश्तों से परे अपने बजूद को कागज़ों में हासिल किया है क्योंकि असल जिन्दगी में तो संघर्ष आज भी है बल्की अब हालात और बदतर होते जा रहे हैं।

कागज़ों पर संविधान में हमें हमारे अधिकार दे कर, असल ज़िन्दगी में बड़े-बड़े शाब्दिक दर्ज़े और इज्ज़त के नाम पर हमें बेडीयों से जकड़ दिया गया है, हाल में ही उ0 प्र0 सरकार ने लड़कियों के स्कर्ट पहन पर स्कूल जाने तक पर रोक लगाने की बात कही थी, खैर यह एक छोटा से उदाहरण है, शहरी छेत्रों में जिस तरह बाज़रों ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का बाज़ारीकरण कर के उसे एक हद तक महदूद कर दिया है और इसी चकाचैन्ध में अधिक्तर लोग दसके असल महत्व को भूल बैठे हैं। वो महिलायें जिन्हे इस दिन या अपने किसी भी अधिकार के बारे में पता ही नही है, उन महिलाओं को क्या?

कल दिनांक 07/03/17 की एक निर्मम घटना जो सभी को जानना बेहद ज़रूरी है क्यों कि आज भी हम औरतें और बच्चियों को आज़ादी से जीवन जीने का अधिकार नही मिला है। ज़िला कन्नौज ब्लाक तालग्राम की रहने वाल एक बच्ची के साथ उसके पिता के दोस्त ने बलात्कार किया, कस्तूरबा गांधी स्कूल में पढ़ने वाली एक 11 साल की बच्ची जो होली की छुट्टी के बाद अपने पिता के साथ अपने घर से वापस अपने स्कूल के लिए जा रही थी, पिता ने अपने साथ अपने मित्र को भी ले लिया और अपनी दोे बच्चियों को लेकर स्कूल की तरफ चल पड़ा पिता अपने मित्र की मोटर साईकिल से जा रहा था, पिता के दोस्त को यह बात पता थी कि पिता को शराब पीने की लत है, पूरे रास्ते मित्र ने पिता को शराब पिलाया और गाड़ी को सैफई गांव के रास्ते की तरफ मोड दिया वहां पहचुंते- पहुंचते पिता सो गया। बच्चियां घबरा रही थी लेकिन पिता के मित्र ब्रिज भान ने बच्चियों को लालच दी कि तुम्हे सामान खरीद कर देंगे तुम हमारे साथ चलो, बड़ी बेटी को अपने साथ खेत में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया,

इतना ही नही अपने दुष्कर्म को छिपाने के लिए बच्ची को एक हस्पताल में ले गया जहां उसका कोई जानने वाला भर्ती था, बच्ची ने हिम्मत जुटाई और किसी ड़ाक्टर से जा कर अपनी बात को कहा, डाक्टर ने पुलिस को सूचना दी लेकिन भारत देश की राट्रवादी पुलिस के पास जब यह मामला पहुंचा तब पुलिस ने बच्ची के साथ नर्मी से पेश आने और ब्रज भान के खिलाफ एफ0 आई0 आर0 लिखने के बजाय बच्ची को बेरहमी से मारा और कहा कि तू झूठ बोल रही है।

बच्ची कहती रही कि आप चलो वहां खेत में मेरा हेयरबैण्ड छूटा हुआ है लेकिन बच्ची की एक नही सुनी गई। कल से अब तक इस घटना की एफ0 आई0 आर0 नही लिखी गई है।

ऐसी शर्मनाक घटना हर रोज़ घटित होती है, और लगभग हर घटना में पीड़ित महिला , पीड़ित बच्ची की आवाज़ को पैसे और पावर के बल पर कुचल दिया जाता है उनकी आवाज़ को दबा दी जाती है।

समाज के अधिक्तर लोग ऐसी घटना को नज़र अन्दाज़ कर देते हैं, सरकार अपनी आंखे मूंद लेती है, भारत साकार मौन व्रत रख लेती है और मामला आया और गया हो जाता है। महिलाओं के अधिकारों के लिए कानून तो बन गये हैं लेकिन उनका पालन होता नज़र नही आता है, जब महिलायें आवाज़ उठाती हैं तब कहा जाता है कि वो झूठे केस दर्ज कराती हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि हज़ारों एैसे मामले रोज़ पावर वाली कुर्सी और खाकी जूतों के नीचे दबा दिये जाते हैं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा, कोई एक दिन हमारे लिए र्निधारित कर दिया गया, जिसमें कन्या को पूजा गया, कोई दिन जिसमें हम औरतों को बाज़ार दिखा कर सामान दिला कर दिल को बहला दिया गया, औरतों को संगठित होकर अपने अधिकारों को छिन लेने की ज़रूरत है, हम 50 प्रतिशत आबादी हैं हमें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जा रहा है।

इस सोच को बदलने का वक्त है। लुभावने इश्तेहारों ने औरतों को पतला, दुबला, गोरा, लम्बे बाल, बडी आखों जैसी खोखली और बेमानी और खोखली सोच में में जकड़ रखा है और हर कदम पर औरतों का दमन हो रहा है। आज इस महिला दिवस को सिर्फ एक दिन के लिए मना कर खत्म नही होने दें, इसके हथियार बनाये और तब तक लड़े जब तक हर दिन हमारा आपका हम सब महिलाओं का अपना न हो जाये।

(नोट- महिला दिवस के अवसर पर प्रकाशित ये लेख अधिवक्ता अशमा इज्ज़त की निजी राय है, इसमें उल्लेखित घटना उनकी जानकारी और विवेक पर आधारित है )

  • अशमा इज्ज़त, अधिवक्ता हाई कोर्ट उ0 प्र0

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