उत्तर प्रदेश में 11 मार्च को दो सीटों के लिए उपचुनाव होने है। इस उपचुनाव में बसपा और सपा ने जैसे सशर्त हाथ मिलाया वैसे ही कांग्रेस इस चुनावी मैदान में बीजेपी की तरह अलग पड़ चुकी है। बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ और उनकी पूरी फौज है तो कांग्रेस के पास राज बब्बर एंड कंपनी जिसके पास जीतने की उम्मीद तो है मगर इतिहास का हवाला दिखाते हुए।
मगर इन सबमें सबसे अलग कांग्रेस का उस नेता को गोरखपुर की सीट का उम्मीदवार खड़ा करना जो कि सामान्य परिवार से नहीं आती है मगर उनका जनाधार अच्छा माना जाता है। कांग्रेस ने महानगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ वजाहत करीम की पत्नी डॉ सुरहिता करीम को गोरखपुर की सीट देना कोई आम बात नहीं है।
क्योकिं उन्हें सामना करना है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जो साल 1998 से लगातार 5 बार इस सीट पर अपनी जीत हासिल करते हुए लोकसभा में अपनी जगह बनाई रखी और आखिर में दिल्ली से लखनऊ आ गए।जिसके बाद गोरखपुर की सीट खाली हो गई और अब वो अपनी नाक लड़ाई लड़ रहे हैं हालाँकि इस उम्मीदवार को योगी ने कभी पसंद नहीं किया।
इस सीट पर समाजवादी पार्टी से प्रवीण निषाद और बीजेपी से उपेन्द्र शुक्ला को चुना है। गोरखपुर में पिछले 30 सालों में उपेन्द्र पहला ब्राह्मण चेहरा है जो बीजेपी को गोरखपुर में मिले है।
ये वही उपेन्द्र जिनका गोरखनाथ मंदिर से कोई खास जुड़ाव नहीं रहा है। मुख्यमंत्री योगी और उनके बीच एक वक़्त में इतनी कड़वाट आ गई थी की योगी ने उनका टिकट तक कटवा दिया था।
इसके फलस्वरुप हुआ ये की उपेन्द्र ने निर्दलिय चुनाव लड़कर बीजेपी के वोट काट दिए थे। अब आखिर में उन्हें अब बीजेपी का उम्मीदवार बना दिया। उपेन्द्र शुक्ला को उम्मीदवार बनाने का मतलब साफ़ है क्योकिं प्रदेश में कुल 10 से 12 फीसद ब्राह्मण है। इसके बाद ठाकुरों की आबादी है जो 8 से 10 फीसद है।
वही अगर बीजेपी ब्राह्मण और ठाकुर वोट के बल पर चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है। वही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी निषाद समुदाय के हाथों पार्टी का झंडा सौंपा दिया है , 19 लाख 50 हज़ार वोटरों में निषादों की संख्या लगभग साढे तीन लाख के बीच बताई जाती है।
साल 1999 के लोकसभा चुनाव में निषादों के कद्दावर नेता रहे जमुना निषाद ने मुस्लिम और यादव वोटों के बल पर योगी आदित्यनाथ को बेहद कड़ी टक्कर दी थी। उस चुनाव में योगी की जीत का अंतर महज सात हज़ार वोटों तक सिमट गया था।
समाजवादी पार्टी के पास हर वो वजह जिससे वो ज़मीन पर मजबूत नज़र आ रही है मगर ये तो आने वाले 7 दिनों में ही पता लग पायेगा की गोरखपुर की लड़ाई जो अब मुख्यमंत्री योगी के लिए एक बड़ी परीक्षा क्योकिं अगर वो त्रिपुरा की जीत ने अगर उनका राजनैतिक कद बढ़ाया है तो गोरखपुर उसकी सबसे बड़ी वजह है। अगर वो घर में ही हार गए तो बाहर उनकी छवि पर असर पड़ सकता है।