दिल्ली हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर 2018 को मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नज़रबंदी से रिहा कर दिया। नवलखा को प्रतिबंधित नक्सली समूह के साथ कथित रूप से संबंधों के लिए 28 अगस्त को देशभर में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा मारे गए छापों में गिरफ्तार किया गया था। वह गिरफ्तार किए गए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से एक थे।

खैर दिल्ली उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा को रिहा करते हुए कहा कि उनकी हिरासत कानून के तहत ‘असमर्थनीय’ है। महाराष्ट्र पुलिस नवलखा को पुणे ले जाना चाहती थी लेकिन कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को भी रद्द कर दिया।

गोदी मीडिया गौतम नवलखा, वरवरा राव, अरुण फरेरा, वेरनन गोंजाल्विल और सुधा भारद्वाज को पहले ही नक्सली, आतंकी, देशद्रोही साबित कर चुकी है। अदालत से पहले गोदी मीडिया न्यूज स्टूडियो में ही फैसला कर देती है। अब न्यूज चैनलों में एंकर नहीं जज बैठते हैं।

ऐसे में गौतम नवलखा की रिहाई पर गोदी मीडिया का सवाल उठाना तो लाज़मी था। Zee News के कुख्यात/विख्यात शो ‘ताल ठोक के’ में 3 अक्टूबर की शाम इसी मुद्दे पर कचरा (डिबेट) की गई। शाम पांच बजे प्रसारित होने वाले इस शो के एंकर अमन चोपड़ा ने ट्विटर पर लिखा ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के टुकड़े-टुकड़े कब ?

‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ एक आभासी गैंग है जिसे गोदी मीडिया ने पैदा किया है। सरकार को सवाल से बचाने के लिए इस आभासी दुश्मन का इस्तेमाल किया जाता है। अमन चोपड़ा और Zee News का पर्सनल इंट्रेस्ट किसी से छिपा नहीं है। पूरे शो के दौरन अमन अपने हिसाब से किसी पैनलिस्ट को देशद्रोही तो किसी पैनलिस्ट को देशभक्त होने का तमगा देते रहते हैं।

3 अक्टूबर का पूरा शो गौतम नवलखा के आठ साल पहले के एक भाषण पर था। क्यों था, पता नहीं। नीचे गौतम नवलखा के उस भाषण का वीडियो है देख लीजिए-

ख़ैर, शो शुरू होते ही एंकर अमन चोपड़ा ने कुछ सवाल सामने रखे। सवाल कुछ इस प्रकार हैं-

1. गौतम नवलखा को देश तोड़ने की आज़ादी क्यों?

2. पत्थरबाजों का यार देश का गद्दार क्यों नहीं?

3. विचारधारा के नाम पर भारत से विश्वासघात कब तक?

4. सेना को दुश्मन बताने वाला देश का सगा कैसे?

5. आतंकियों के यार से आतंकियों जैसा सलूक क्यों नहीं?

6. जो आतंकी से ज्यादा खतरनाक विपक्ष क्यों उसके साथ?

अमन चोपड़ा के पहले सवाल से शुरू करते हैं। 1. गौतम नवलखा को देश तोड़ने की आज़ादी क्यों?

शायद ये सवाल गौतम नवलखा की रिहाई को लेकर है। नवलखा को रिहाई दिल्ली हाईकोर्ट से मिली है। क्या अमन चोपड़ा कोर्ट से ज्यादा काबिल हैं? क्या दिल्ली हाईकोर्ट को ये पता नहीं है कि नवलखा देश तोड़ रहे हैं या नहीं?

और अगर आपत्ति नवलखा के भाषण से है तो फिर अमन चोपड़ा को ये बताना चाहिए कि भाषण देने से देश कैसे टूट जाता है? क्या भारत इतना कमज़ोर देश है जो किसी के भाषण देने से टूट जाएगा? और अगर गौतम नवलखा के भाषण से देश को टूटना ही था तो आज तक टूटा क्यों नहीं? क्योंकि जी न्यूज जिस भाषण से TRP लूट रहा है वो तो 24 अक्टूबर 2010 का है यानी लगभग आठ साल पहले का है।

अब इससे भी ज़रूरी बात ये है कि अगर गौतम नवलखा देशद्रोही हैं, उनका आठ साल पहले का भाषण देश तोड़ने वाला है तो मोदी सरकार उनपर देशद्रोह का केस क्यों नहीं चला रही? ये भाषण आठ साल पहले का है, मोदी सरकार को चार साल बीत चुके हैं। अगर गौतम देशद्रोही हैं तो उनपर आज तक इस भाषण को लेकर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

गौतम नवलखा भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नजरबंद किए गए थे, इस आठ साल पहले के वीडियो की वजह से नहीं। अब सवाल उठता है कि जब कोर्ट में इस भाषण को लेकर कोई मामला ही नहीं चल रहा तो भी फिर टीवी स्टूडियों में बहस क्यों हो रही है?

दूसरे सवाल पर लौटते हैं – पत्थरबाजों का यार देश का गद्दार क्यों नहीं?

अमन चोपड़ा किस आधार पर कह रहे हैं कि पत्थरबाजी करना देशद्रोह है? क्या अदालत ने कभी ऐसा कहा है? पत्थरबाजी कब से देशद्रोह हो गई? और अगर ये देशद्रोह है तो कश्मीर में सैनिक पत्थरबाजों से अपना बचाव क्यों करते हैं, उठा कर सीधे जेल में क्यों नहीं डाल देते? मोदी सरकार उन सभी पत्थरबाजों पर देशद्रोह का मुकदमा क्यों नहीं चला रही है?

क्या सावन में पुलिस पर पत्थरबाजी करने वाले कांवड़िया भी देशद्रोही हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या जम्मू कश्मीर के वो वरिष्ठ बीजेपी नेता भी देशद्रोही हैं जिन्होंने अपने बेटे की दुकान बचाने के लिए सुरक्षा बल पर पत्थर उठा लिया था? अप्रैल 2018 में बीजेपी वरिष्ठ नेता कुलदीप राज गुप्ता ने पत्थर किसी की रक्षा या जनता की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपने बेटों की अवैध दुकानों को बचाने के लिए उठाया था।

इससे भी ज्यादा जरूरी बात ये है कि पत्थरबाजों का समर्थन करने वाली पीडीपी के साथ नरेंद्र मोदी सरकार चला चुके हैं। तो क्या वो भी पत्थरबाज समर्थक और देश के गद्दार हैं?
Related imageअमन चोपड़ा का तीसरा सवाल है- विचारधारा के नाम पर भारत के विश्वासघात कब तक?

क्या ऑरेंज विचारधारा का देशभक्ति पर कॉपीराइट है? क्या असहमती की आवाज़ उठाने वाली विचारधार देशद्रोही है? क्या सत्ता से सुर मिलाना ही देशभक्ति है? और भाषण देना, किताब लिखना, किताब पढ़ना कब से विश्वासघात हो गया। अगर भाषण देने से कोई देश टूट जाता है तब तो वह देश बहुत ही कमज़ोर है उसे इलाज की ज़रूरत है। क्योंकि बिना असहमती और विरोध के लोकतंत्र अधूरा है।

अमन चोपड़ा का चौथा सवाल है- सेना को दुश्मन बताने वाला देश का सगा कैसे?

पहला सवाल तो यही है कि सेना पर सवाल क्यों नहीं उठाया जा सकता? और सेना देशभक्ति का पैमाना कैसे है? ये सही है कि सेना बॉर्डर की सुरक्षा करती है इसलिए हम अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं। लेकिन हकीकत तो ये भी है कि किसान खेत में अनाज उगाता है जिसे खाकर हम जिंदा रहते हैं।

कोई काम किसी दूसरे काम से ज्यादा देशभक्ति वाला कैसे है? सैनिक किसान से बड़ा देशभक्त कैसे है? इसे मापने का पैमाना क्या है? और अगर सेना पर सवाल उठाना ग़लत है तो किसान को नक्सली कहना कैसे ग़लत नहीं है?

अमन चोपड़ा का पांचवा सवाल है- आतंकियों के यार से आतंकियों जैसा सलूक क्यों नहीं?

ये सवाल बीजेपी से भी पूछना चाहिए क्योंकि बीजेपी ने श्रीनगर से निकाय चुनाव लड़ने के लिए पूर्व आतंकी कमांडर सैफुल्ला फारूख़ को टिकट दिया है। क्या बीजेपी आतंकियों का समर्थन चाहती है? क्या बीजेपी भी आतंकियों की यार है, बीजेपी के साथ भी आतंकियों जैसै सलूक करना चाहिए?

त्रिपुरा में बीजेपी जिस IPFT के साथ मिलकर सरकार चला रही है वो आज़ाद त्रिपुरा के लिए हिंसक संघर्ष करता रहा है। जम्मू कश्मीर में जिस पीडीपी के साथ बीजेपी सरकार चला चुकी है वो पीडीपी अलगाववादियों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखती है।

तो क्या बीजेपी भी आतंकियों की यार है? पाकिस्तान के जिस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में सैकड़ों भारतीय सैनिक मारे गए वो पीएम मोदी के मित्र हैं। जी हां नवाज़ शरीफ़। क्या भारत की जनता को नरेंद्र मोदी के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो वो उनके मित्र नवाज़ शरीफ़ के साथ करना चाहती थी या है?

अब सबसे ज़रूरी बात- आतंकी संगठनों का सपोर्ट करने का मतलब आतंकी होना नहीं होता। ये बात सुप्रीम कोर्ट के एक बहस से साबित होती है।

Vaiko

MNMK प्रमुख Vaiko लिट्टे का समर्थक था। लिट्टे एक आतंकी संगठन है जिसने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की थी। कोर्ट में Vaiko पर लिट्टे का समर्थन करने का केस चला। Vaiko सुप्रीम कोर्ट से छूट गया। क्यों छूट गया?

क्योंकि उस वक्त के ऑटर्नी जनरल (महान्यायवादी) सोली सोराबजी ने कोर्ट में कहा कि किसी आतंकी संगठन का समर्थन करना आतंकवाद नहीं होता है। ऑटर्नी जनरल भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा भारतीय उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख वकील होता है।

जब सोली सोराबजी ऑटर्नी जनरल थे तब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। यानी सुप्रीम कोर्ट में सोली सोराबजी ने जो कहा वो वाजपेयी सरकार का मत था। इसका मतलब ये है कि बीजेपी भी मान चुकी है कि आंतकी संगठन का समर्थन करना आतंकवाद नहीं होता।

सोली सोराबजी 

अमन चोपड़ा का अंतिम यानी छठा सवाल – जो आतंकी से ज्यादा खतरनाक विपक्ष क्यों उसके साथ?

आतंकी से ज्यादा खरनाक क्या होता है? शब्दों की राईमिंग के लिहाज़ से जी न्यूज ने सवाल तो बना लिया लेकिन आंतकी से ज्यादा खतरनाक का मतलब क्या है? क्या भाषण देने वाला आतंकी से ज्यादा खरतनाक है? क्या आतंकी से ज्यादा खरतनाक लोग मुंह से गोली मारते हैं और कलम से गोला निकलते हैं?

क्या सरकार से सहमती न रखने वाले आतंकी होते हैं? और अमन चोपड़ा होते कौन हैं ये डिसाइड करने वाले कि कौन आतंकी है और कौन नहीं?

अब अंत में… वो तीन लोग जिनपर मुसलमानों के कत्लेआम का आरोप है। स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित, साध्वी प्राची जब बेल पर रिहा हुए तो बीजेपी ने उनका वेलकम किया। वहीं एक मानवाधिकार कार्यकर्ता जो सिर्फ नजरबंद था उसकी रिहाई पर देश को ख़तरा बताते हैं। कैसे गोदी मीडिया कैसे?

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