एक बार फिर से राम मंदिर का मुद्दा सुर्ख़ियों में है। सोमवार, 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई हुई। 3 मिनट की सुनवाई में मामले को अगले तीन महीने के लिए टाल दिया गया। अब अगली सुनवाई जनवरी में होगी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम जोसफ की पीठ ने कहा कि ये मामला अर्जेंट सुनवाई के तहत नहीं सुना जा सकता है। इसलिए इस मामले में फैसले के लिए अभी इंतेज़ार करना पड़ेगा।

सुनवाई तीन महीने तक के लिए टाले जाने के बाद अब केंद्र की मोदी सरकार साधु समाज और मंदिर निर्माण के पक्षधरों के निशाने पर आ गई है।

इन लोगों का मानना है कि मोदी सरकार मंदिर निर्माण को लेकर गंभीर नहीं है। वह इस मुद्दे को सियासी फायदे के लिए बाकी रखना चाहती है, इसीलिए संसद में इसपर कानून नहीं बनाया जा रहा।

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मोदी सरकार पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर हिंदुओं को धोखा दे रही है। वह लोगों से झूठ बोल रही है कि वह अपने कार्यकाल में मंदिर का निर्माण करवाएगी, जबकि वह ख़ुद मंदिर का निर्माण नहीं कराना चाहती। आरोप है कि अगर सत्तारूढ़ बीजेपी मंदिर का निर्माण करवा देती है तो उसके पास अगले चुनाव में कोई मुद्दा नहीं रहेगा।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने हाल ही में इस बात की पुष्टी भी कर चुके हैं। उनका मानना है कि चुनाव जनभावना के आधार पर जीते जाते हैं, विकास और अच्छे कामों की बुनियाद पर चुनाव नहीं जीते जा सकते।

उन्होंने अपने इस बयान में साफ़ कर दिया था कि उनकी पार्टी विकास नहीं मंदिर-मस्जिद और हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी।

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स्वामी के इस बयान से साफ़ है कि बीजेपी राम मंदिर विवाद को सुलझाना नहीं चाहती, बल्कि इसपर सियासी रोटी सेंकना चाहती है। बीजेपी इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव तक ज़िंदा रखना चाहती है।

अध्यात्मिक गुरु आचार्य प्रमोद ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार राम मंदिर के नाम पर देश की जनता से झूठ बोल रही है।

उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “राम से लेकर राफ़ेल तक, धोखा ही धोखा और झूठ ही झूठ, मीडिया ख़रीद सकते हो लेकिन जनता नहीं बिकेगी, ये जवाब देगी, इंतज़ार करो”।

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