विवेक तिवारी हत्याकांड पिछले तीन दिनों से सुर्खियों में है। योगी सरकार ने विवेक के परिवार को 25 लाख का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। जिन दो पुलिसवालों पर गोली चलाने का आरोप है उनके खिलाफ हत्या मामाला दर्ज किया गया है।

साथ ही नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गए है और गिरफ्तारी भी हो चुकी है। मामले की जांच एसपी क्राइम की निगरानी में एसआईटी कर रही है। सरकार और मीडिया ने इस मामले में जैसी प्रतिबद्धता दिखायी है वो आश्चर्यचकित करता है। क्योंकि योगीराज में ऐसी प्रतिबद्धता और तेजी देखने को नहीं मिलता है। यूपी में तो आए दिन ऐसी हत्याएं होती रहती हैं। लेकिन उन मामलों को न मीडिया प्राथमिकता देती है, न ही सरकार की तरफ से तत्काल कदम उठाए जाता है।

ख़ैर विवेक तिवारी हत्याकांड मामले में ऐसा नहीं हुआ। विवेक तिवारी का परिवार सरकार के ऐक्शन से संतुष्ट नजर आ रहा है। विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी का कहना है कि ‘मुझे प्रदेश सरकार पर पूरा विश्वास है और आज मुख्यमंत्री से मिलने के बाद ये विश्वास और दृढ़ हो गया है। उनसे मिलने के बाद हिम्मत बंधी है कि सदमे से उबर कर मैं जिंदगी जी पाऊंगी।’

सीएम योगी ने जो विश्वास विवेक तिवारी के परिवार को दिलाया पाए है, वह विश्वास दूसरे पीड़ित परिवारों को आज तक क्यों नहीं मिला? क्योंकि वो परिवार दलित या मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं इसलिए?

UP पुलिस ने 56 दलित,यादव और मुसलमानों को मार दिया लेकिन मीडिया ‘विवेक एनकाउंटर’ पर रो रही है

सवाल ये है कि क्या फर्जी एनकाउंटर में मारे गए सभी पीड़ित परिवारों को विवेक तिवारी के परिवार की तरह ही मुआवजा और नौकरी नहीं मिलनी चाहिए? क्या सरकार को उन सभी पीड़ित परिवारो को 25 लाख का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी नहीं देनी चाहिए?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं ‘राष्ट्रीय फेक एनकाउंटर मुआवज़ा पॉलिसी तय करने का यही सबसे सही समय है।

तिवारी एनकाउंटर केस में जितने समय में मुआवज़ा दिया जाएगा और जितना मुआवज़ा और परिवार को जैसी नौकरी दी जाएगी, वही आधार बने। हर मरने वाला नागरिक है और कानून की नज़र में सब बराबर हैं। इसलिए हर ऐसी मौत का समान मुआवज़ा।’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here