विवेक तिवारी के लिए जरूर दुख और अफसोस किया जाना चाहिए, मुझे भी है। आपकी पत्नी कल्पना और आपकी मासूम बच्ची के आंसू किसी को भी रूलाने के लिए पर्याप्त हैं, लेकिन यही उचित समय समय जब उन 56 नौजवानों के लिए भी रो लिया जाए, जिन्हें अपराधी कह उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले 10 महीनों में मार डाला।
क्या उनके लिए सिर्फ इसलिए न रोया जाए कि क्योंकि उनके नाम के आगे विवेक तिवारी नहीं लगा था, या विश्व कि सबसे नामी गिरामी कंपनी के एप्पल के एरिया मैंनेजर नहीं थे या वे उत्तर प्रदेश की राजनधानी में नहीं रहते थे या उनका चेहरा उतना चमकता हुआ नहीं था, जितना विवेक का था, या वे उच्च मध्य वर्ग के महानगरी शहरी नहीं थे।
मैं अपने उन 56 भाईयों के लिए भी रो रहा हूं, जिन्हें इंकाउटर के नाम पर मारा डाला गया। विवेक के मरने का सबको अफसोस हो रहा है, क्योंकि विवेक का चेहरा बार-बार टी. वी. पर दिखाया जा रहा है।
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लेकिन मित्र विवेक आप जैसे जिन 56 नौजवानों को मारा गया, वे किसी के बेटे थे, उनकी कोई बूढ़ी मां है, जो जार-जार कर आज भी रो रही हैं, उनका भी कोई बूढ़ा बाप है, जो भीतर-भीतर सिसकियां भर रहा है, उनमें से भी कुछ की पत्नी हैं, जो बेवा हो गई, उनके भी मासूम बच्चे हैं, जो बेसहारा हो गए हैं।
क्या उनके लिए सिर्फ इस लिए न रोया जाए कि वे विवेक तिवारी नहीं, कोई जितेंद्र यादव थे, कोई खान थे या भगवती प्रसाद थे यानी वे मुस्लिम थे, यादव थे या दलित थे, क्योंकि वे गरीब थे। आप जैसी उंची जाति में नहीं पैदा हुए थे, वे विश्व की सबसे बड़ी बहुराष्टीय कंपनी में मैनेजर नहीं थे या वे राजधानी में नहीं रहते थे।
विवेक मुझे किसी की भी मौत से दुख होता है, बच्चे और नौजवानों की मौत से और भी दुख होता है। जानबूझकर हत्या कर दी गई हो तो और। मैं तो कल्पना करता हूं यदि मुझे किसी की हत्या भी किसी परिस्थिति में करनी पड़े तो उसका भी दुख मुझे होगा।
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लेकिन मैं अपने दलित भाई, मुस्लिम भाई और पिछड़ी जाति के भाई की मौत पर उतना ही दुखी होता हूं, जितना किसी विवेक तिवारी या राधेश्याम शुक्ल के।
विवेक आप तिवारी होना, आपका एप्पल के एरिया मैनेजर होना, राजधानी का निवासी होना और उच्च मध्यवर्ग का होना आपके काम आया। सारी मीडिया आपके मरने से दुखी है,राजनेता दुखी है और पत्रकार भी नाराज और दुखी हैं। आपके हत्यारों को पकड़ लिया गया है, उन पर एफआईआर दर्ज हो गई है, हो सकता उनको सजा भी हो जाए।
आपकी मौत के बदले लाखों के मुआवजे की घोषणा हो गई है, हो सकता यह करोड़ों हो जाए। सीबीआई जांच की बात खुद मुंख्यमंत्री कर रहे। गृहमंत्री सीधे आपकी हत्या के मामले पर नजर रखे हुए हैं।
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लेकिन मेरे 56 भाईयों की मौत का जिक्र भी नहीं हुआ। उनकी रोती मां और बीबी की तस्वीरे मीडिया पर नहीं दिखाई गईं, न हीं उनके मासूम बच्चों को किसी ने देखा। उनकी मौत को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट की उपलब्धि के खाते में डाल दिया गया।
मेरे जिन 56 भाईयों को अपराधी कह कर पुलिस ने मार डाला। हो सकता उनमें कोई अपराधी रहा हो,इसका निर्णय करने का अधिकार न्यायालय को था, उत्तर प्रदेश की पुलिस को नहीं।
इन भाईयों की मौत सब चुप्प, एक चुप्प हजार चुप्प। शायद आपकी मौत के बाद उन पर भी कोई बात हो, उनकी बूढ़ी मां के दुख का कोई जिक्र। बस यही एक उम्मीद है।
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सिद्धार्थ रामू