यूपी की राजधानी लखनऊ में हुए फर्जी एनकाउंटर पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल ने मीडिया के रवैये पर सवाल खड़े किये हैं। उन्होंने मीडिया पर कटाक्ष करते हुए कहा, संपादकों आप ऐसी ही सक्रियता मुठभेड़ के दूसरे मामलों में भी दिखाएं।
चाहे मरने वाला दलित हो या फिर पिछड़ा हो या अल्पसंख्यक हो गरीब हो आप कृपया इस देश के नागरिकों को बराबर समझें जैसा कि सविंधान अधिकार देता है।
दरअसल लखनऊ में हुए कुछ दिनों पहले हुए फर्जी एनकाउंटर पर मामले पर मीडिया पर पक्षपात का करने का आरोप लग रहा है। सवाल ये भी उठाए जा रहे है कि आखिर मीडिया उन फर्जी मुठभेड़ में मारे गए परिवारों को दिखता जैसे उसने विवेक तिवारी की मौत पर दिन रात सरकार पर दबाव बनाया।
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इसपर टिप्पणी करते हुए दिलीप मंडल कहते है कि विवेक तिवारी के साथ जो कुछ हुआ वो कोर्ट तय करेगी। मगर इस मामले में मीडिया जैसे एक्टिव रही है मैं बस यही कहना चाहूँगा विवेक तिवारी मामले को इस रूप में लिया की जैसा की उनका कोई अपना मर गया हो इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन भारत का हर नागरिक उनका अपना क्यों नहीं इसमें समस्या है।
बोलता हिंदुस्तान से खास बातचीत करते हुए उन्होंने मीडिया को सविंधान की तरह सभी नागरिकों को बराबर का दर्जा देने चाहिए। क्योकिं सविंधान का ये मतलब है की जो ऊची जाति को उसके साथ इंसाफ करें।
उन्होंने कहा कि मैं बस मीडिया से ये निवेदन करना चाहूँगा भारत के हर नागरिक को नागरिक की हैसियत दें उसको भी अपना माने और उसके मरने पर भी उसी तरह दुखी हो जैसे की विवेक तिवारी के मरने पर हुए थे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय मीडिया पर लोग भरोसा करना बंद कर देंगें जैसा की विदेशों में होता है।
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विवेक तिवारी फर्जी एनकाउंटर मानक बने
फर्जी एनकाउंटर मामले पर सरकार को मुहवाजा पालिसी होनी चाहिए। जिसका मानक विवेक तिवारी का फर्जी एनकाउंटर हिना चाहिए सरकार ने जैसे विवेक तिवारी के परिवार को मुहवाजा दिया वैसे ही सरकार को उन लोगों के साथ करना चाहिए जिन लोगों के मामले पहले ही पता लगता जाता की ये एनकाउंटर फर्जी था, सरकार को कम से कम इन मामलों में भेदभाव नहीं करना चाहिए।
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बहुजनों में इंसानियत होती है
विवेक तिवारी एनकाउंटर मामले जिस तरह से ब्राह्मण महासभा ने पीड़ित पक्ष की रखने की कोशिश वो साफ दर्शाता है की जाति को उजागर करने का काम कौन कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस मामले स्वर्ण जाति के पत्रकारों ने बाकि मुठभेड़ों से अलग देखने की कोशिश की सारा मामला वही से पैदा होता है।
क्योकिं बहुजन विचार लोगों में इंसानियत होती है मानवीय भावनाओं से संचालीय होते है। किसी ने नहीं कहा कि विवेक तिवारी के परिवार को इंसाफ नहीं मिलना चाहिए सब यही कह रहे की मगर सब यही कह रहे है की जैसे विवेक तिवारी के साथ हुआ वैसा इंसाफ खान पटेल अंसारी यादव को भी मिलना चाहिए।
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तिवारी एनकाउंटर से मीडिया का जातीय चरित्र उजागर हुआ है
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि भारतीय मीडिया को हिंदू सवर्ण पुरुष कंट्रोल करता है। मीडिया को अगर अपनी क्रेडिबिलिटी बनाई रखनी है तो उसे न्यायसंगत हो जाना है। क्योकिं विवेक एनकाउंटर से भारतीय मीडिया का जातिगत चेहरा उजागर हो गया है।
ऐसा इसलिए क्योकिं यही मीडिया उन लोगों की आवाज नहीं उठाती जिनके मामले में साबित हो चुका है की उनके साथ फर्जी एनकाउंटर हुए है। ये मीडिया कभी भी जितेंद्र यादव के लिए नहीं खड़ी होती है कभी अलीगढ़ में मारे गए लोगों के लिए नहीं खड़ी होती जिनके साथ भी फर्जी एनकाउंटर हुए है।
मीडिया के दिल उन्हें इंसाफ दिलवाने के लिए कोई दर्द नहीं पनपता है और यही समस्या मूलक है। अगर इस समस्या का समाधान भारतीय मीडिया कर ले तो वो अपनी विश्वसनीयता बचा सकता वरना उसकी विश्वनीयता बुरी तरह से खंडित हो चली है