अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट

सोमवार, 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई हुई। 3 मिनट की सुनवाई में मामले को अगले तीन महीने के लिए टाल दिया गया। अब अगली सुनवाई जनवरी में होगी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम जोसफ की पीठ ने कहा कि ये मामला अर्जेंट सुनवाई के तहत नहीं सुना जा सकता है। ख़ैर, सोमवार को सुनावाई होने के एक सप्ताह पहले से ही गोदी मीडिया में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर दिन भर चर्चा हो रही थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मीडिया

सप्ताह भर पहले से ‘राम मंदिर’ पर चर्चा करने वाली गोदी मीडिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अवसाद ग्रस्त हो चुकी है। दरअसल कोर्ट का फैसला आने के कुछ दिन पहले गोदी मीडिया ने अपने सबसे ‘नफरती’ एंकरों का दस्ता अयोध्या भेजा था। कोई अयोध्या से ही ‘ताल ठोक’ रहा था, कोई ‘दंगल’ कर रहा था। सरयू के बगल से जहरीले बयानों की नाली बहने लगी थी।

29 अक्टूबर आया और सुप्रीम कोर्ट ने 3 मिनट की सुनवाई में मामले को अगले तीन महीने के लिए टाल दिया। अब गोदी मीडिया लिखा रहा ‘हे राम तारीख पर तारीख’

भारतीय न्याय व्यवस्था और मीडिया का एजेंडा

भारत की न्याय व्यवस्था कछुआ की रफ्तार से फैसला लेने के लिए कुख्यात है। इसमें गलती न्यायपालिका की भी नहीं है। जब न्यायपालिका में पर्याप्त जज और न्यायाधीश ही नहीं है तो तय समय में न्याय कैस मिलेगा?

लेकिन शायद ये बात मेनस्ट्रीम का तमगा लेकर टहलने वाली गोदी मीडिया को नहीं पता। मेनस्ट्रीम मीडिया के कुछ संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर संस्थान सत्ताधारी बीजेपी का एजेंडा चला रहे हैं। ये बात कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन से साफ भी हो चुका है।

क्या गोदी मीडिया में इतनी हिम्मत है कि वो जासूसों से पूछ सके उन्हें आलोक वर्मा के पीछे किसने लगाया था?

जो गोदी पत्रकार सुप्रीम कोर्ट की सुनावाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं क्या उन्हें न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या पता नहीं है? भारतीय न्यायालय में आतंकवाद, बलात्कार, हत्या, आदि जैसे गंभीर मामलों के हजारों केस पेंडिंग हैं।

नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) का डाटा बताता है कि भारतीय न्यायालयों के 30/10/2018 तक कुल 28091656 मामले पेंडिंग हैं। इसमें 8.22% ऐसे केस हैं जो दशकों से पेंडिंग हैं। 1949 से चल रहा अयोध्या विवाद भी इसी 8.22% में है।

महिलाओं द्वारा दर्ज कराए आपराधिक मामलों की संख्या 1454154 है। क्या मीडिया ने कभी इन महिलाओं को समय से न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाया? क्या इस गोदी मीडिया ने कभी महिलाओं के लिए ‘हे राम तारीख पर तारीख’ लिखा ! नहीं लिखा।

क्योंकि इससे सत्ताधारी दल को फायदा चुनावी फायदा नहीं होगा। दलितों के उत्पीड़न, आदिवासियों के जमीन पर कब्जा, नक्सली और आतंकी बताकर मारे गए आम नागरिकों के लाखों मामले न्यायालयों में लंबित हैं लेकिन मीडिया सिर्फ ‘राम’ को इंसाफ दिलवाना चाहता है।

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