नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद अपनी सरकार को कई नाम दिए। ‘गुड गवर्नेंस’ इनमें से एक था। गुड गवर्नेंस के नारे के साथ कहा गया कि ये सरकार पिछली सरकारों के मुकाबले बहतर तरीके से काम करेगी और समय गवाए बिना सरकारी योजनाओं को पूरा किया जाएगा जिस से तथाकथित अच्छे दिन जल्द ही आएँगे।

लेकिन इस वादे की भी हालत ये है कि ‘गुड गवर्नेंस’ के बजाए सरकारी परियोजनाओं में देरी हो रही है। हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली इस सरकार में सरकारी कामकाज में इतनी देरी हो रही है कि परियोजनाओं की लगत बढ़ गई है। इसके चलते देश  तीन लाख करोड़ का नुकसान होगा।

तय समय से देरी और अन्य कारणों के चलते बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 348 परियोजनाओं की लागत करीब तीन लाख करोड़ रुपये बढ़ गई है।

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पीटीआई ने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि 1351 परियोजनाओं पर पहले 15.72 लाख करोड़ की लागत तय की गई थी।

लेकिन, नए अनुमान के मुताबिक अब इन योजनाओं के पूरा करने में करीब 18.72 लाख करोड़ की लागत आएगी। यह लागत पहले के मुकाबले करीब 19 फीसदी ज्यादा है।

150 करोड़ से ज्यादा की लागत वाली परियोजना की निगरानी करने वाले सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने बताया है कि तय समय में काम पूरा न हो पाना परियोजनाओं की लागत बढ़ने की प्रमुख वजह है।

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मंत्रालय के मुताबिक, इस समय 76 परियोजनायें ऐसी हैं जो पांच साल से भी ज्यादा की देरी से चल रही हैं।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी मंजूरी में देरी होने के कारण परियोजनाओं में देरी हुई ह। इसके अलावा उपकरणों की आपूर्ति, बजट रिलीज होने में देरी के साथ-साथ नक्सलवाद और कानून-व्यवस्था भी योजनाओं में विलंब का कारण है।

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