सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर विवाद जारी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 6 दिन खुलकर सोमवार को सबरीमाला मंदिर के कपाट दोबारा बंद हो गएं। लेकिन महिलाओं को मंदिर में एंट्री नहीं मिली।

इस बीच प्रदर्शनकरियों ने 23 अक्टूबर को कुल 19 पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की। सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर 24 अक्टूबर को सुनवाई करने वाला था। लेकिन अब सुनवाई 13 नवंबर को होगी।

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने साफ कहा कि वह कोई भी पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेंगे। एक तरफ केरल की वामपंथी सरकार का कहना है कि वो कोर्ट के फैसले के साथ है और महिलाओं को मंदिर में एंट्री मिलनी चाहिए।

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी समेत अन्य दक्षिणपंथी संगठन महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में एंट्री का विरोध कर रहे हैं। अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि मंदिर में पूजा करने का अधिकार है लेकिन अपवित्र करने का नहीं।

मंगलवार को मुंबई में ब्रिटिश हाई कमीशन और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में स्मृति ईरानी ने कहा, ‘मैं उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं। लेकिन यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे। आप ऐसा नहीं करेंगे।’

दरगाह में महिलाओं की एंट्री को जीत बताने वाली ‘स्मृति’ मंदिर में महिलाओं के एंट्री को पाप बता रही हैं

उन्होंने आगे कहा कि, ‘क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है? यही फर्क है। मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन अपवित्र करने का अधिकार नहीं है। यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने तथा सम्मान करने की जरूरत है।’

सोशल मीडिया पर स्मृति ईरानी के इस बयान की जमकर आलोचना हुई। ईरानी के बयान को तमाम लेखों और रिपोर्ट्स के माध्यम तर्कहीन बताया गया। प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पीएचडी स्कॉलर जयंत जिज्ञासु ने फेसबुक पर लिखा है…

लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे। ईरानी साहिबा, जब सैनिटरी पैड लेकर मांएं-बहनें मंदिर नहीं जा सकतीं, तो कुछ लोग खाली दिमाग लेकर पार्लियामेंट कैसे पहुंच जाते हैं!

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