विनम्रता और पवित्रता जैसे शब्दों से भरे राष्ट्र के नाम के संदेश के प्रसारण के बाद वोट के लिए तपस्या करते प्रधानमंत्री।
कोई इनसे पूछें कि इन्होंने कौन सी समस्या सुलझा दी है। फसल बीमा का हाल इन्हें पता नहीं है क्या। गुजरात ही अलग हो गया है इस बीमा के फ्राड से।
अभी भी इन्हें लग रहा है कि कुछ दलों का शग़ल है। इतना प्रचंड बहुमत लेकर ऐसे रोना रो रहे हैं जैसे बहुमत विपक्ष के पास हो।
क्या यह कुछ दलों का शग़ल था कि तालाबंदी के बीच
बिना किसी को बताए अध्यादेश से यह क़ानून लाया गया?
कुछ लोगों के फ़ायदे के लिए लाया गया क़ानून किसका शग़ल था? विपक्ष का या तपस्वी जी का?
हर चीज़ में वोट और वोट के हिसाब से आगे पीछे फ़ैसला ये किसका शग़ल है?
दरअसल ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को किसानों से नफ़रत हो गई है। उन्हें लगता है कि धर्म के मुद्दों की आड़ में लोगों को वोट देना ही होगा।
क़ानून बनाने से पहले किसानों से बात नहीं, आंदोलन करते रहे तब बात नहीं की, क़ानून हटाया तब भी किसानों से बात नहीं की।
किसानों से इतनी नफ़रत ठीक नहीं है सर