यूपी, एमपी व बिहार के मज़दूरों के ख़िलाफ़ हो रही सामूहिक हिंसा को रोकने के लिए गुजरात सरकार कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रही है।

कुर्सी बचाने के लिए अपने-पराये और नफ़रत की राजनीति को जब बढ़ावा दिया जाता है तो समाज के शोषित-पीड़ित तबके के लोग ही किसी ना किसी रूप में इसका शिकार होते हैं।

ऐसा ‘नेता’ किस काम का जो शांति की एक अपील भी ना कर सके! UP-बिहार की हाय मंहगी पड़ेगी ‘साहेब’

देश का संविधान सभी नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में जाकर रोज़ी-रोटी कमाने का अधिकार देता है।

लेकिन ‘गुजरात मॉडल’ ना केवल मज़दूर विरोधी है बल्कि संवैधानिक मूल्यों के भी ख़िलाफ़ है। गांधी के गुजरात और मोदी के गुजरात में जमीन-आसमान का अन्तर है।

बता दें कि हिंसा और पलायन का मुख्य कारण गुजरात के साबरकांठा से है, इस केस में एक बिहारी मजदूर के गिरफ्तार होने के बाद लोगों का गुस्सा अब वहां अन्य काम कर रहे उत्तर भारतीयों पर बढ़ चूका है।

‘जिन लोगों ने एक गुजराती को PM बनाया आज उन्हीं UP के लोगों को गुजरात से भगाया जा रहा है’

इन हमलों की वजह से हजारों लोग गुजरात से पलायन कर चुके हैं। जिस बिहार और उत्तर प्रदेश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की सत्ता सौंपी वहीं के लोगों को गुजरात से उनको बेरोजगार करके भगाया जा रहा है।

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