गुजरात में बच्ची से रेप के बाद शुरू हुई हिंसा, अब भाषावाद और क्षेत्रीयता का रूप धारण कर चुकी है। गुजराती समाज द्वारा धमकी मिलने के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग अपनी जान बचाकर घर की तरफ भाग रहे हैं।

ख़ौफ का आलम ये है कि लोग हजार से दो हजार किलोमीट तक का सफर बस कर रहे हैं। क्योंकि फरमान जारी हो चुका है। जान बचाकर कैसे भी गुजरात से निकलना है। ट्रेनें एकदम भरी हुई हैं। खड़े होने की भी जगह नहीं बच रही।

ऐसे में डरे हुए ये लोग बसों में लदा कर तीस तीस घंटे की असहनीय यात्रा करने को मजबूर हैं। गुजरात से बिहार लौट रहे लोगों का कहना है कि उन्हें हिंदी बोलने पर मारा जाता था।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात से बिहार लौटे कुछ लोगों ने कहा है कि ‘हमलोग कंपनी में काम कर रहे थे तभी अंदर में घुसकर हमें मारते थे। बोलते थे जितने हिंदी बोलने वाले लोग हैं सभी को मार देंगे। चाहे वह उत्तर प्रदेश के हों या मध्य प्रदेश के, जो भी लोग हिंदी बोलते थे उसको मारते थे।

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बता दें कि 28 सितंबर को साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर कस्बे के पास एक गांव में 14 माह की बच्ची से कथित तौर पर बलात्कार हुआ था।

इस रेप का आरोप बिहार के रहने वाले रविंद्र साहू नाम के मजदूर पर लगा है। रविंद्र साहू को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अब गुजरात में सभी बिहारियों के खिलाफ भयावह हिंसा का माहौल बन गया है।

लेकिन ये लॉजिक समझ से बाहर है कि आखिर किसी व्यक्ति के कथित अपराध की सजा पूरी कम्युनिटी को कैसे दी जा सकती है? इस लॉजिक के हिसाब से तो पूरे गुजरात को बलात्कारी माना जाना चाहिए क्योंकि बलात्कारी आसाराम गुजरात का रहने वाला है।

पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में शासन, प्रशासन नाम की कोई चीज है या नहीं? क्या गुजरात में अदालत की जगह जनता तय करती है सजा?

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