राजनीतिक रूप से मूर्ख बनने से पहले आर्थिक रूप से शिक्षित बनो

नोटः पहले नोट नीचे लिखता था, अब ऊपर क्योंकि पोस्ट कुछ भी हो, कमेंट कुछ भी करने वाले लोग सुधर नहीं रहे हैं। आई टी सेल की नौकरी चालू हो गई है। बैंकिंग सीरीज़, नौकरी, सरकारी कर्मचारियों के वेतन, छुट्टी, परीक्षाओं में धांधली के सवाल के वक्त वे कहीं गुम हो गए थे। अब फिर से आने लगे हैं। ऐसे लोगों की परवाह न करें। हिन्दी में लिखी इन सूचनाओं को करोड़ों लोगों तक पहुंचा दें।

आई टी सेल वाले आ जाइये। बस रिश्तेदारों को मत बताइयेगा कि आप आई टी सेल में काम करते हैं। शादी भी नहीं होगी। अगुआ भाग जाएगा। जो दूसरों को गाली देता है, वो उसकी बेटी को कितनी गाली देगा। ऐसे लफंदर पार्टी मुख्यालय में हीरो हो सकते हैं समाज में नहीं। अब आगे लेख पढ़ें।

38 विलफुल डिफॉल्टर के 500 करोड़ रुपये का ए पी ए write off कर दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि बैंक ने अपने मुनाफे से एन पी ए के खाते में पैसा डाला और एन पी ए के खाते में नुकसान कम दिखने लगा। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि जिसने लोन लिया था, उसे माफ कर दिया गया।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने यह ख़बर 6 नंबर के पन्ने पर कहीं कोने में छापी है जबकि पहले पन्ने पर पहली ख़बर बैंकों के एन पी ए पर ही है। एन पी ए मतलब नॉन प्रोफिट असेट यानी जो लोन लिया गया है वो चुकाया नहीं गया। हम यह कभी नहीं जान पाएंगे कि एक तरह की माफी का आधार क्या रहा होगा। राजनीतिक पसंद या कुछ और।

पिछले तीन साल में 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको में से 11 बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक ने prompt corrective measures (PCA) के तहत रखा है। यह एक किस्म की निगरानी व्यवस्था है। बिजनेस स्टैंडर्ड की ख़बर है कि 5 और बैंक इस निगरानी के तहत आने के कगार पर खड़े हैं क्योंकि इनका एन पी ए कुल लोन का 6 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो गया है।

जब दो साल तक बैंकों के पास कैश की उपलब्धता कम हो जाए, अपनी संपत्ति पर रिटर्न कम होने लगे और एन पी ए बढ़ जाता है तब उन्हें पीएसी के तहत रखा जाता है।

पिछले पांच साल में भारत सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक में करीब दो लाख करोड़ रुपये डाले हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में दिए गए चार्ट के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक का नेट वर्थ है 1,567,004 है। जबकि सरकार ने एन पी ए से बचाने के लिए पैसे डाले हैं 190,480 रुपये डाले गए हैं।

कुल छह बैंक ऐसे हैं जिनमें 60,000 करोड़ से अधिक पैसे डाले गए हैं। जो लोग लोन ले गए उनका कुछ नही हुआ। उनके बदले सरकार पैसे डाल रही है। जनता का पैसा पहले लेकर ग़ायब हो जाए और फिर सरकार जनता के पैसे से ही भरपाई करे। गेम समझ तो आएगा नहीं, इसलिए गेम देखते जाओ।

18 राज्यों का औसत शिक्षा बजट से भी कम गुजरात ने 2018-19 के लिए बजट आवंटित किया है। कुल बजट का 13.9 प्रतिशत। अपने पिछले बजट से काफी कम किया है। कृषि पर भी गुजरात ने 18 राज्यों के औसत से कम बजट का प्रावधान किया है। औसत है 6.4 प्रतिशत, गुजरात का कृषि बजट है कुल बजट का 3.3 प्रतिशत।

87 करोड़ बैंक खातों को आधार से जोड़ने की ख़बर आई है। आधार को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। जब सब जगह आधार हो ही गया तो इस सुनवाई की क्या उपयोगिता रह जाएगी। कम से कम सुनवाई के दौरान तो रोक होनी चाहिए थी।

वैसे इन सब आंकड़ों से प्रभावित होने से पहले दो बातें सोच लें। आज जनधन खाते आंकड़े बन कर आपकी ज़िंदगी में कामयाबी के प्रतीक तो बन गए हैं मगर इनका बड़ा हिस्सा निष्क्रिय हो चुका है। वही हाल अटल पेंशन योजना का है।

अगर सरकार यही बता दे( ईमानदारी से) कि कितनी अटल पेंशन योजना शुरू होने के बाद बंद हो गए, लोग दूसरा प्रीमियम नहीं दे पाए तो आंकड़े लड़खड़ा जाएंगे।

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