क्या आप जानते हैं परिवारवाद की विरोधी भाजपा में ज्ञात-अज्ञात कितने परिवार हैं? संघ परिवार का नाम तो सुना ही होगा मगर भाजपा के भीतर भी कई प्रकार के परिवारवाद के कमल खिलने लगा हैं। इन दिनों भाजपा ने परिवारवाद के आयात की राजनीति शुरू की है।

विश्व में किसी एक दल में राजनीतिक परिवारों का इस कदर आयात किये जाने की यह पहली घटना है। इस तरह भाजपा में आयातित और उत्पादित परिवारों को मिलाकर कई प्रकार के परिवार हो गए हैं। भाजपा के पास एक ऐसी फैक्ट्री है जिसमें बाहर से आया सेकुलर,कांग्रेसी,परिवारवादी और भ्रष्टाचारी राष्ट्रवादी होकर निकलता है।

इसी फैक्ट्री का नतीजा है कि भाजपा के लिए सिर्फ गांधी परिवार,लालू परिवार और मुलायम परिवार ही राजनीति में दुराचार के प्रतीक रह गए हैं। बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस में नेता की सीट तय है मगर पार्टी ने कांग्रेस की तर्ज पर अपने भीतर भी कहीं राज्य के स्तर पर, कहीं विधानसभा के स्तर पर, कहीं लोकसभा के स्तर पर तो कहीं संगठन के पदों के स्तर पर चाँदी के चम्मच के साथ पैदा हुए लोगों को बिठाना और जीतना शुरू कर दिया है। इस तरह परिवारवाद ने भाजपा के भीतर बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली है।

अभी तक भाजपा अपने सहयोगियों के परिवारवाद को लेकर चुप रही है।अकाली दल,शिवसेना,अपना दल, लोकजनशक्ति पार्टी के परिवारवाद से भाजपा नेताओं को कोई दिक्कत नहीं रही है। टीडीपी में चंद्रबाबू नायडू के पुत्र का वर्चस्व बढ़ रहा है। उससे भी भाजपा को दिक्कत नहीं है। भाजपा ने कभी सुखबीर बादल की दावेदारी पर सवाल नहीं उठाया बल्कि उनकी पत्नी और सांसद को दिल्ली में मंत्री बना दिया। उद्धव ठाकरे की दावेदारी पर तो भाजपा बोल ही नहीं सकती है।

वैसे तो परिवारवाद का यह फूल बीजेपी की स्थापना के साथ ही आ गया था। दिवंगत राजमाता सिंधिया संस्थापक सदस्यों में मानी जाती हैं। उनकी विरासत लिये वसुंधरा राजे राजस्थान में मुख्यमंत्री हैं तो बहु यशोधरा राजे मध्यप्रदेश में मंत्री। फिर भी कहा जाता है ति वसुंधरा के सांसद पुत्र को परिवारवाद के कारण मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई! जबकि उसी मंत्रिमंडल में बादल परिवार की बहू को जगह मिली। वैसे महाराष्ट्र में दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे कबीना मंत्री हैं।

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद हैं और युवा मोर्चे के अध्यक्ष रहे हैं। उनके हटते ही परिवारवाद की जगह खाली न रह जाए इसलिए दिवंगत प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन को नया अध्यक्ष बनाया गया है। राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह ने क्या गुनाह किया कि प्रदेश स्तर पर संगठन में सेवा देने के बाद भी तीन बार से टिकट नहीं मिल रहा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र भी सांसद हैं।

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं। उनके बेटे राजवीर सिंह बीजेपी से सांसद हैं। इस बार पोते संदीप को विधानसभा को टिकट मिला है। बहू को भी टिकट मिलने की चर्चा है। पूरी फ़ैमिली एक कार में बैठकर भाजपा में घूम रही है। इसी के साथ राजस्थान में दोनों संवैधानिक पद परिवारवाद के हवाले हैं। राज्यपाल परिवारवादी। मुख्यमंत्री परिवारवादी।

दूसरे दलों से परिवारवाद का आयात करने में भाजपा का कोई मुक़ाबला नहीं है। भाजपा ने दो दो राज्यों से बहुगुणा परिवार का आयात कर नया रिकार्ड कायम किया है। उत्तराखंड में विजय बहुगुणा परिवार तो यूपी में रीता बहुगुणा जोशी परिवार। उत्तराखंड से एक आर्या परिवार भी आयात हुआ है। आर्या पिता के आर्या पुत्र कांग्रेस से भाजपा में आ गए हैं। एक तिवारी परिवार बचा था वो भी आ गया है। नारायण दत्त तिवारी के ख़िलाफ़ भाजपा ने क्या क्या न कहा होगा। मगर 91 साल युवा नारायण दत्त तिवारी के साथ उनके बेटे रोहित शेखर तिवारी भी आ ही गए होंगे। रोहितकब से तिवारी जी की टोपी पहनकर फोटो अपलोड कर रहे हैं।

भाजपा के अंदर कई परिवार हो गए हैं।सिंधिया परिवार,मुंडे परिवार,महाजन परिवार,बहुगुणा परिवार,रमन परिवार,राजनाथ परिवार,कल्याण परिवार,ठाकुर परिवार,आर्या परिवार,तिवारी परिवार। पहले से एक गांधी परिवार भी है! मेनका गांधी और वरुण गांधी। इन सबका एक पैतृक परिवार है जिसे आप संघ परिवार के नाम से जानते हैं।

इन सब परिवारों वाले संघ परिवार की बीजेपी का बादल परिवार,ठाकरे परिवार,पटेल परिवार,पासवान परिवार और नायडू परिवार के साथ ख़ूब बनती है। बीजेपी को अपने और इनके परिवारवाद से कोई दिक्कत नहीं है।कुछ राज्यों में तो बीजेपी ने करीब करीब पूरी की पूरी कांग्रेस का आयात कर लिया है। अरुणाचल,असम और उत्तराखंड इनमें प्रमुख हैं ।

दरअसल भारतीय राजनीति में आदर्श और विचारधारा एक तमाशा है। संगठन और कार्यकर्ता सबसे बड़ा मिथक। किसी के पास ज़मीन पर नेता नहीं है। एक नेता को चमकाने में कार्यकर्ताओं का भावनात्मक इस्तमाल होता है। फिर दूसरे दल से नेता लाये जाते हैं ताकि वो हमेशा अहसानमंद रहे और दावेदारी न करे।

राजनीतिक दल इंटरनेट की तरह ओपन प्लेटफार्म हैं। कोई भी बीजेपी से आईपी अड्रेस ख़रीद कर अपनी वेबसाइट बना सकता है। दूसरे दलों के साथ भी यही है। कांशीराम ने अपने परिवार को भी कभी राजनीतिक लाभ नहीं लेने दिया मगर बसपा ने भी परिवारों को टिकट तो दिये ही हैं। इसलिए परिवारवाद के नाम पर अपना समय बरबाद न करें।

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