गोदी मीडिया की आंख में ‘लोकतंत्र’ सुई की तरह चुभ रही है! जब तक लोकतंत्र सत्ता को शक्ति देता तक तो ठीक है। लेकिन जैसे ही लोकतंत्र बेलगाम सत्ता को चुनौती देता है गोदी मीडिया को पीड़ा होने लगती है।
ऐसी स्थिति में गोदी मीडिया के पत्रकार लोकतंत्र को ही चुनौती देने लगते हैं। आज तक के एंकर रोहित सरदाना का ये ट्वीट पढ़िए…
”राम मंदिर की जगह भगवान राम पैदा हुए या नहीं, कोर्ट तय करेगा। सबरीमला में औरतें किस उम्र में जाएँगी, कोर्ट तय करेगा। दही हांडी की ऊँचाई कितनी होगी, कोर्ट तय करेगा। होली में कौन से रंग लगेंगे, कोर्ट तय करेगा। जय कोर्ट देवता की! इस दीवाली एक दीया कोर्ट के बाहर ही जला लेना!”
राम मंदिर की जगह भगवान राम पैदा हुए या नहीं,कोर्ट तय करेगा. सबरीमला में औरतें किस उम्र में जाएँगी,कोर्ट तय करेगा. दही हांडी की ऊँचाई कितनी होगी,कोर्ट तय करेगा. होली में कौन से रंग लगेंगे,कोर्ट तय करेगा. जय कोर्ट देवता की! इस दीवाली एक दीया कोर्ट के बाहर ही जला लेना!
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) October 16, 2018
रोहित सरदाना के ट्वीट में उनकी पीड़ा साफ झलक रही है। किसी भी मुद्दें पर जज की तरह फैसला सुनाने वाले ये न्यूज एंकर अब न्यायालय पर तंज कसने लगे हैं।
शायद रोहित को इस बात से दिक्कत है कि राम के जन्मस्थल को कोर्ट तय करेगा। सवाल उठता है कि रोहित क्या चाहते हैं, कौन तय करे? अगर रोहित को संविधान से चलने वाले न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है तो किसपर है?
सत्ता की चापलूस ‘गोदी मीडिया’ क्या अकबर का शिकार बनी महिला पत्रकारों को न्याय दिला पाएगी?
न्यायालय के अलावा और कौन तय कर सकता था कि राम कहां पैदा हुए थें? क्या किसी के पास राम के पैदा होने के प्रमाण है? क्या कोई प्रत्यक्षदर्शी है जिसने राम को पैदा होते हुए देखा हो? जाहिर है ऐसा नहीं है।
ऐसे में इस विवादित मुद्दें को सुलझाने के लिए न्यायालय ही एक मात्र विकल्प है क्योंकि न्यायालय संविधान के तहत फैसला करता है किसी धर्म विशेष का ध्यान रखकर नहीं।
गुजरात में 23 साल से बीजेपी सत्ता में है तो सारे सवाल कांग्रेस से क्यों कर रही है मीडिया ?
चाहे मामला सबरीमला का हो या ही हांडी की ऊँचाई की ऊंचाई का, न्यायालय इन सभी मामलों पर जनता के अधिकार और सुरक्षा का ध्यना रखते हुए फैसला सुनाता है। न्यायालय का काम ही यही है। रोहित क्या चाहते हैं कि न्यायालय भी उनकी तरह अपना काम ना करे? वो भी सत्ता के किसी मठाधीश का दास बन जाए?
अब एक दिलचस्प बात…
ऐसा नहीं है कि रोहित सरदाना कोर्ट के तमाम ऐसे फैसलों का विरोध करते हैं। रोहित कोर्ट के उन्हीं फैसलों की आचोलना करते हैं जिससे सत्त को फायदा नहीं होता। या भगवा राजनीति को हवा नहीं मिलती।
अगर कोर्ट बीजेपी के एजेंडे या उसके नेताओं के पक्ष में फैसला सुनाती है तब तो रोहित न्यायालय को सर्वमान्य बताने लगते हैं।
उदाहरण:
1- जब कोर्ट ने जज लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिकाएं खारिज कर दीं, तब रोहित सरदाना बहुत उत्साहित हुए थें। उस शाम उनके शो ‘दंगल’ का टॉपिक था ‘कोर्ट ने धोया अब क्या लोया लोया?’
ये दिल के खोटे हैं,
बिन पैदी के लोटे हैं,
जिधर देखा ढलान
उधर लुढक जाते हैं.
आज की भाषा में ये चमचे नहीं बल्कि कड़छे हैं.
Try to communicate your feelings & thought about other religions as well, why always comments about HINDUISM.
Court has to be neutral….But every year I see that during Diwali every bone is bothered for crackers…but during new year they appreciate crackers of all around the word…..isn’t it unlike judiciary job.
ये कोर्ट पर तंज नहीं कस रहें हैं भावना को समझिए ये उनपर तंज कस रहें हैं जो इन मुद्दों को लेकर कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हैं और हमारे देश के कोर्ट को भी इन मुद्दों पर ध्यान भटकाते हैं
इसकी चमचागिरी जग जाहिर है।ये मीडिया का पत्रकार नही सत्ता का चाटुकार है।