सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाएं प्रवेश को लेकर संघर्ष कर रही हैं। पुलिस बल की कोशिशों के बावजूद अभी तक मंदिर में किसी भी महिला को प्रवेश नहीं मिल सका है।

विरोध को देखते हुए महिलाएं मंदिर में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। लेकिन जिन महिलाओं ने मंदिर में दाख़िल होने का साहस दिखाया है अब सोशल मीडिया पर उनके धर्म की शिनाख़्त की जा रही है। बड़ी ही चालाकी के साथ यह बताने की कोशिश की जा रही है कि मंदिर में प्रवेश उन्हीं महिलाओं को चाहिए जिनकी मंदिर में आस्था नहीं है।

आम आदमी पार्टी के निष्कासित विधायक कपिल मिश्रा ने इसी बात को स्थापित करने की कोशिश की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी कोई श्रद्धा रखने वाली महिला सबरलीमाला में प्रवेश नहीं करना चाहती”।

उन्होंने लिखा, “आज एक मुस्लिम महिला रेहाना फातिमा और एक बिकाऊ पत्रकार कविता जिनका भगवान अयप्पा को पूजने का कोई पारिवारिक इतिहास नहीं है, वो पुलिस की सुरक्षा में मंदिर में दाखिल होने की कोशिश कर रही हैं। हिंदू इस दिन को हमेशा याद रखेगा”।

वहीं, ख़ुद को हिंदुत्ववादी कहने वालीं पत्रकार शेफाली वैद्य ने लिखा, “मैरी स्वीटी, फातिमा और वामपंथी कविता ही वो तीन महिलाएं हैं जो मंदिर में प्रवेश करना चाहती हैं। अगर यह ‘रेडी टू वेट’ आंदोलन की जीत नहीं है तो मैं नहीं जानती कि यह क्या है”!

बता दें कि गुरुवार को भारी सुरक्षा-व्यवस्था के बीच हेलमेट पहनकर महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा और पत्रकार कविता जक्कल ने मंदिर में दाखिल होने की कोशिश की थी। लेकिन पुजारियों और प्रदर्शनकारियों के भारी विरोध के चलते गर्भगृह से सिर्फ 18 सीढ़ी दूर रहते ही दोनों महिलाओं को लौटना पड़ा था।

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इस घटना के बाद भड़के प्रदर्शनकारियों ने कोच्चि स्थित रेहाना फातिमा के घर पर हमला कर तोड़फोड़ भी की थी। अब सवाल यह उठता है कि महिला अधिकारों के मामले में कपिल मिश्रा और शेफाली वैद्य महिलाओं के धर्म की शिनाख़्त आख़िर क्यों कर रहे हैं। कहीं वह इस मामले को सांप्रदायिक रंग देकर सुप्रीम कोर्ट से मिले महिलाओं के अधिकार को कमज़ोर तो नहीं करना चाहते?

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