विकास दुबे के एनकाउंटर ने उत्तर प्रदेश की पुलिस के साथ-साथ पूरी न्यायिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी नेतओं समेत आम जनता इस पूरे प्रकरण को शक़ की निगाहों से देख रही है। कहा जा रहा है कि विकास के तार ऊपर तक जुड़े थे, इसलिए उसको मारना ‘जरूरी’ हो गया था।

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे चर्चा में 3 जुलाई को आया था, जब पुलिस उसे गिरफ्तार करने पहुंची। विकास समेत उसके साथियों की पुलिस से मुठभेड़ हो गई। इस मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मी मारे गए और विकास फरार हो गया।

उन्हीं 8 पुलिसकर्मियों में से एक सुल्तान सिंह भी था। सुल्तान की पत्नी, उर्मिला वर्मा का कहना है कि वो एनकाउंटर से संतुष्ट हैं। लेकिन अब ये पता नहीं चल पाएगा कि विकास को किससे बल मिल रहा था। उर्मिला के मुताबिक, अगर विकास ज़िंदा रहता तो उससे पूछ-ताछ करके ये सब पता किया जा सकता था।

विकास के एनकाउंटर को फर्जी बताए जाने के पीछे ये भी एक बड़ी वजह है। विकास पर 60 मुकदमें चल रहे थे। ये भी कहा जा रहा है कि उसके बड़े नेताओं समेत पुलिसवालों से अच्छे संबंध थे। यहां तक कि इंस्पेक्टर विनय तिवारी को विकास की मदद करने के जुर्म में गिरफ्तार भी किया गया है।

कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर से पहले विकास की उज्जैन में हुई गिरफ्तारी हुई थी। जानकरों द्वारा उस गिरफ्तारी को भी सरेंडर ही बताया जा रहा था।

सालों साल से आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाला विकास दुबे अभी तक कैसे बचता आ रहा था? उसको किसका संरक्षण मिलता रहा? उसके एनकाउंटर के बाद अब ये सभी सवाल दब जाएंगे। जनता और देश से गद्दारी करने वाले बच जाएंगे।

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