2002 गुजरात दंगों के मामले में भले ही कोर्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी हो, लेकिन इन दंगों के कुछ निशां अभी भी बाकी हैं, जो बार-बार सवाल की शक्ल में खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही एक सवाल अब रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह के एक ख़ुलासे के बाद खड़ा हो गया है।

गुजरात दंगों के दौरान हिंसा से निपटने के लिए बुलाई गई सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह ने अपनी किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ में दंगों को लेकर सनसनीखेज़ ख़ुलासा किया है।

उन्होंने अपनी किताब में दावा किया है कि दंगों के दौरान अहमदाबाद पहुंची सेना को दंगा प्रभावित इलाक़ों में जाने के लिए पूरे एक दिन का इंतज़ार करना पड़ा था, अगर सरकार उन्हें ट्रांसपोर्ट की सुविधा दे देती तो सेना कुछ और जानें बचा सकती थी।

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ज़मीरुद्दीन शाह ने लिखा, 1 मार्च को देर रात 2 बजे मैं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के घर पहुंचा। वहां तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस भी मौजूद थे। वे दोनों लोग डिनर कर रहे थे और मुझे भी ऑफर किया।

मैं डिनर कर तुरंत वहां से निकल आया। मेरे पास गुजरात का एक टूरिस्ट मैप था और उन जगहों की जानकारी जुटाई, जहां हालात ज्यादा खराब थे। मैंने अधिकारियों को उन सामान की लिस्ट भी दी, जिसकी सेना को तत्काल जरूरत थी।

लेकिन 3000 सेना के जवान जो 1 मार्च को सुबह 7 बजे ही अहमदाबाद की एयरफील्ड में उतर चुके थे उन्हें गुजरात प्रशासन द्वारा यातायात मुहैया कराए जाने के अभाव में पूरा एक दिन इंतजार करना पड़ा। इसी दौरान सैकड़ों लोग मारे जा चुके थे।

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किताब में किए गए इन दावों के बारे में जब मीडिया ने ज़मीरुद्दीन शाह से पूछा तो वह अपने दावों पर क़ायम नज़र आए। उन्होंने कहा कि अगर हमें रात में ही गाड़ी मुहैया करा दी जाती तो निश्चित तौर पर नुकसान बहुत ही कम हुआ होता।

उन्होंने कहा कि जो पुलिस छह दिनों में नहीं कर सकी उसे हम लोगों ने 48 घंटे में कर दिखाया जबकि संख्या में हम उनके छह गुना कम थे।

पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए शाह ने कहा कि जब भीड़ घरों में आग लगा रही थी तब पुलिस मौन होकर किनारे खड़ी थी। जो तबाही मचाई जा रही थी उसे रोकने के लिए पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

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उन्होंने कहा कि “मैंने कई विधायकों को पुलिस स्टेशनों में बैठे देखा। उनका वहां रहने का कोई मतलब नहीं था। जब भी हम पुलिस को कर्फ्यू लगाने के लिए कहते उसे वो कभी भी अल्पसंख्यक इलाके में नहीं लागू करते। इसलिए अल्पसंख्यक हमेशा भीड़ से घिरे रहे। ये पूरी तरह से पुरानी और पक्षपातपूर्ण हैंडलिंग थी”।

रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल द्वारा गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार पर लगाए गए इन आरोपों के बाद एक बार फिर से यह सवाल उठने लगे हैं कि जब सरकार इन दंगों को रोक सकती थी तो फिर उसने इसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं? क्या सरकार ने जानबूझकर इन दंगों को भड़कने दिया? क्या इन दंगों में सरकार की भी संलिप्तता थी?

1 COMMENT

  1. 1984 and 2002 were totally planned, organized and executed Genocides by the ruling congress and BJP Government and leaderships. In both cases the Governments don’t allow police, security forces, army etc. to save lives. Had the Governments wanted mobs could never have been able to kill thousands of innocents. That is why both governments rewarded and protected the guilty leaders. And the saddest reality is that Indian voters rewarded the guilty congress and BJP with election victories.

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