ये आरोप अक्सर लगाया जाता है कि सरकारें किसानों के नाम पर हर साल बजट में जो लोन देने की घोषणाएं करती हैं उसका मकसद भी असल में किसानों की नाम पर उद्योगपतियों की जेबें भरना होता है।
प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार को किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द बताते हैं। लेकिन हाल ही में आरटीआई के माध्यम से जो जानकारी सामने आई है। उससे पता चलता है कि कैसे किसानों के नाम पर हज़ारों करोड़ निजी कंपनियों और उद्योगपतियों को दे दिया जा रहा है।
एक आरटीआई के जवाब में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बताया है कि साल 2016 में सरकारी बैंकों ने 615 खातों को 58 हज़ार 561 करोड़ रुपिए कृषि ऋण दे दिया। इस हिसाब से हर एक खाते में औसतन 95 करोड़ से ज्यादा का कृषि लोन डाला गया है।
इतना लोन किसान को तो दिया नहीं जा सकता मतलब ये निजी कंपनियों या उद्योगपतियों को दिया गया है। आरटीआई ‘द वायर’ द्वारा दायर की गयी थी।
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आरबीआई ने देश में कुछ आर्थिक क्षेत्रों को उच्च प्राथमिकता देने और उनके विकास के लिए बैंकों को ये निर्देश जारी किया है कि वे अपने कुल लोन का एक निश्चित हिस्सा कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग, निर्यात क्रेडिट, शिक्षा, आवास, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में व्यय करें।
इसे प्राथमिकता क्षेत्र उधार (पीएसएल या प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग) कहते हैं।
इसके तहत बैंकों को अपने पूरे लोन का 18 प्रतिशत हिस्सा कृषि के लिए देना होता है, जो कि छोटे और सीमांत किसानों के पास जाना चाहिए। लेकिन किसानों की जगह ये पैसा कॉर्पोरेट के पास जा रहा है।
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बता दें कि एनडीए सरकार द्वारा साल 2014-15 में 8.5 लाख करोड़ का कृषि लोन देने का प्रावधान रखा गया था वहीं साल 2018-19 के लिए इसे बढ़ाकर 11 लाख करोड़ कर दिया गया है। लेकिन ये लोन किसानों की जगह मिल उद्योगपतियों को रहे हैं।
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि 2016 से पहले भी कृषि लोन के नाम पर भारी मात्रा में लोगों को कर्ज दिया गया है। साल 2015 में 604 खातों में 52 हजार 143 करोड़ का लोन दिया गया जो कि प्रति खाते में 86.33 करोड़ रुपये हुआ।
वहीं साल 2014 में 659 खातों में 91.28 करोड़ के हिसाब से 60 हजार 156 करोड़ रुपये का कृषि लोन दिया गया।