राफेल विमान सौदे को लेकर विवाद कम होना का नाम नहीं ले रहे हैं। उद्योगपति अनिल अम्बानी ने कहा था कि उन्होंने इस विमान के पुर्जों का ठेका हांसिल करने के लिए किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की है। लेकिन जो हलियाँ जानकारी सामने आई है वो अनिल अंबानी और मोदी सरकार दोनों की मुश्किलें बढ़ा सकती है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने जिस दिन (26 जनवरी 2016) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 36 रफाल विमानों की खरीद से जुड़े सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, उससे दो दिन पहले ही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एंटरटेनमेंट ने उनकी मित्र और अभिनेत्री जूली गाए के साथ एक फिल्म बनाने का समझौता किया था।

उसी साल बाद में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को 59 हजार करोड़ रु का वह ठेका मिला जो दोनों देशों के बीच हुए विमान सौदे की शर्तों का एक हिस्सा था।

इसके तहत डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस नाम की एक नई कंपनी बनाई जानी थी जिसमें 51 फीसदी हिस्सा रिलायंस डिफेंस का होना था और बाकी यानी 49 फीसदी राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट का। यह सौदे के ऑफसेट क्लाज के तहत हुआ था।

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बता दें, कि जूली उस समय राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के आधिकारिक निवास में उनके साथ ही रहती थीं। फ्रांस्वा ओलांद मई 2012 से लेकर मई 2016 तक फ़्रांस के राष्ट्रपति थे। उन्होंने 2014 में जूली के साथ अपने रिश्ते को सार्वजानिक किया था।

अब इसके बाद ये संभावना बढ़ जाती है कि क्या अनिल अंबानी तत्कालें फ़्रांस राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद को प्रभावित करने की कोशिश की थी। मोदी सरकार को इस बात का पता था उसके बावजूद भी उसने रिलायंस को डसॉल्ट का पार्टनर क्यों बन्ने दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक 24 जनवरी 2016 को रिलायंस एंटरटेनमेंट ने ऐलान किया कि वह जूली गाए कि फर्म रोग इंटरनेशनल के साथ एक करार कर रही है और इसके तहत दोनों मिलकर एक फ्रेंच फिल्म बनाएंगे।

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इसके बाद 26 जनवरी को दोनों देशों ने 36 रफाल विमानों की खरीद के समझौते पर दस्तखत किए। वहीं, जिस फिल्म के निर्माण में रिलायंस भागीदार बनी थी उसे फ्रांसीसी अभिनेता और फिल्मकार सैवज हजानास्यूइस ने निर्देशित किया। ‘टू ला ओट’ नाम की यह फिल्म 20 दिसंबर 2017 को फ्रांस में रिलीज हुई।

कांग्रेस इस सौदे को लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमलावर है। उसका आरोप है कि सरकार ने यह सौदा यूपीए सरकार की तुलना में तीन गुना ज्यादा कीमत पर किया है। उधर, सरकार इससे इनकार करती रही है।

क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अम्बानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

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इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डासौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। 2015 में मोदी सरकार ने इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए 2016 में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अम्बानी की कंपनी बनाएगी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

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