एक वक़्त था जब बड़े प्यार से राजनेताओं के नाम वहां की जनता रखा करती थी, अब मीडिया नाम रखती है। मीडिया अब नेताओं के मज़ाक़ बनाने में मददगार बन रही है। इस बात का ख़ुलासा करता है कोबरापोस्ट द्वारा किया गया स्टिंग।
स्टिंग में जब प्रचारक बनकर गया रिपोर्टर पूछता है- हम चाहते हैं नेताओं का मज़ाक़ उड़े, मज़ाक़ सीधे नहीं इशारों इशारों में लोग समझ जाएँ। इस पर जवाब देते हुए मीडिया संस्थान के बड़े पद पर रहने वाले कहते है अरे बिलकुल हो जायेगा हमारे यहाँ कार्टून दे दीजिए वो भी अच्छा चलेगा ही। इसके बाद वो कहता है मैं समझ गया क्या कह रहे है।
विपक्षी नेताओं की छवि नकारात्मक गढ़ने के लिए ओछे शब्दों के प्रयोग का प्रसताव है जैसे मायावती को बुआ , अखिलेश को बबुआ और राहुल को पप्पू बनाया गया है। जिस दौर में मीडिया आ चुका है वो बड़ा भयानक है। बड़े बड़े चेहरे जिनका काम समाज की सबसे कम सुनी हुई आवाज़ को उठना होता था, अब साम्प्रदायिकता का शोर कर रहे हैं , चरित्र हनन कर रहे हैं।
अब इन्हें पत्रकार कहा जायेगा की नहीं ये वक़्त आने पर पता चल ही जायेगा मगर क्या कोई जेल जायेगा क्या कुछ बड़ा बदलाव होगा ? इसका जवाब अभी आना बाक़ी है।
क्या वो ऐसे पत्रकारों पर कोई कार्यवाही करेंगें ये बड़ा सवाल है, क्योकिं इस स्टिंग को दुनिया के सामने आये करीब 24 घंटे होने को है मगर कुछ लोगों को छोड़ दें तो इस मामले सभी जैसे सोची समझा मौन धारण किया हुआ है.
स्टिंग में इतने बड़े नामों का मजाक बनना या किसी नेता की छवि सिर्फ इसलिए ख़राब करना क्योकिं आपको पैसे मिल रहे है ऐसा होना एक खतरनाक मीडिया का जन्म जिसे सुपारी पत्रिकारिता कहा जाता है।