31 अक्टूर 2018, आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की 143वीं जयंती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का लोकार्पण किया है।
‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ के नाम से बनी सरदार पटेल की मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है। 182 मीटर ऊंची इस मूर्ति को बनाने में करीब 3000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
इस मूर्ति को लेकर तामाम तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। गुजरात का आदिवासी समाज इस मूर्ति का विरोध कर रहा है। आदिवासियों का कहना है कि वो गुजरात के महान बेटे सरदार पटेल के खिलाफ नहीं हैं।
बल्कि सरकार द्वार किए जा रहे दमन और शोषण के खिलाफ हैं। विरोध कर रहे आदिवासियों का कहना है कि गुजरात सरकार ने विकास ने नाम पर हमारी जमीन तो ले ली लेकिन मुआवजा नहीं दिया। और न ही पुनर्वास करवाया।
सरदार 26 साल तक गुजरात कांग्रेस के चीफ़ रहे लेकिन RSS में 26 दिन नहीं रहे, उनके विचार मोदी से अलग थे
इस मामले पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है ‘सरदार पटेल ने राष्ट्र निर्माण का ज्यादातर काम दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद में रहकर किया. यहीं वे आवास हैं, जहां वे रहे।
क्या यह अच्छा न होता कि गुजरात के सैकड़ों आदिवासियों को गांव-जंगल से उजाड़कर सरदार पटेल की मूर्ति लगाने की जगह…
देश के लौहपुरुष की स्टैच्यू बनवाने वाले मोदी ने अपने लौहपुरुष आडवाणी को ही स्टैच्यू बना दिया है
…दिल्ली में वसंत विहार या ग्रेटर कैलाश या मुंबई में कफ परेड, नरीमन प्वांट या बांद्रा या जुहू में दो-तीन हजार अमीरों की कोठियां तोड़कर वहां पटेल की मूर्ति लगती?
देश सबका है, लेकिन जमीन की कुर्बानी सिर्फ आदिवासी दे। और विरोध करे तो उसे नक्सली बताकर मार भी दो। यह कैसा लोकतंत्र है?’