नोटबंदी को लेकर आरबीआई के जो अंतिम आंकड़े सामने आए हैं उन्होंने मोदी सरकार के नोटबंदी के कदम को गलत तो ठहरा ही दिया है साथ ही प्रधानमंत्री मोदी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि प्रतिबंधित 99.3% नोट बैंकों में वापस आया गए हैं।

इन आंकड़ों ने केंद्र सरकार के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के दावे और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हकीकत भी जनता के सामने लाकर रख दी है। इस बात की तुलना करना ज़रूरी हो गया है दोनों में से किसके दावे सच हुए हैं।

8 नवम्बर 2016 की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक से टेलीविज़न स्क्रीन पर आ जाते हैं। वो बताते हैं कि उनकी सरकार ने नोटबंदी का कदम उठाया है। यानि 500 और 1000 रुपए के तत्कालीन चलन के नोट बंद कर दिए गए हैं।

इसका मकसद वो कालेधन पर सख्त कदम उठाना और देश से उसका खात्मा करना बताते हैं। उस लम्बे भाषण में वो कई दावे करते हैं। जैसे इस कदम के बाद कालाधन बैंकों में वापस नहीं आएगा।

डिजिटल इंडिया को बढ़ावा मिलेगा। मुद्रा ना होने से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी और देश में नकली मुद्रा का धंदा भी ठप हो जाएगा।

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नोटबंदी के ठीक 15 दिन बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राज्यसभा में खड़े होकर नोटबंदी को भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बताते हैं।

वो ये दावा करते हैं कि इस कदम से कालेधन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। नकली मुद्रा फिर से बाज़ार में आ जाएगी। इस से देश की जीडीपी गिरेगी और लोग लाखों की संख्या में बेरोजगार होंगे।

नोटबंदी के दो दिन बाद ही कर्नाटक में नए शुरू हुए 2000 के नकली नोट पकड़े जाते हैं। ये खबर पीएम मोदी के नकदी मुद्रा के धंदे को ख़त्म करने के दावे पर पानी फेर देती है।

नोटबंदी के छह महीने बाद जब जीडीपी के आंकड़े सामने आए तो जीडीपी दो साल के सबसे निचले स्तर पर चली गई। जीडीपी गिर कर 6.1% पर आ गई जो इसी तिमाही में पिछले साल 7.6% थी।

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अगस्त 2018 में एक आरबीआई रिपोर्ट में सामने आया है कि नोटबंदी से देश के छोटे व्यवसायों को 9 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है।

और अब आरबीआई ने प्रतिबंधित नोटों के गिनती ख़त्म कर बताया है कि कि नोटबंदी के दौरान 15.44 लाख करोड़ रुपए के नोटों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। और इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपिए बैंकों में वापस आ चुके हैं।

मतलब केवल 13000 करोड़ रुपए ही बैंकों में वापस नहीं आ सके। यानि की प्रतिबन्ध किए गए नोटों के 1 प्रतिशत से भी कम। नोटबंदी के दौरान बंद किये गए 500 और 1000 रुपये के 99.3% नोट वापस आ गए हैं। आरबीआई ने ये जानकारी बुधवार को जारी अपनी एक रिपोर्ट में दी।

500 और 1000 के 99.3% नोट बैंकों में वापस आए, मोदीजी फिर क्यों देश को ‘नोटबंदी’ जैसा दर्द दिया गया था?

ये सभी जानकारियां प्रधानमंत्री मोदी के दावों को झूठ साबित करती हैं और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन के दावों को सही। इससे ये भी पता चलता है कि नोटबंदी को कितनी कम तैयारी के साथ अंजाम दिया गया कि सरकार उस से होने वाली तबाही का अंदाज़ा नहीं लगा सकी।

जबकि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने मात्र 15 दिनों में नोटबंदी से भविष्य में बनने वाली स्तिथि का आकलन कर उसे राज्यसभा में बता दिया।

एक दावा जो पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने किया था कि नोटबंदी भारत का सबसे बड़ा घोटाला है। इसके लिए कुछ चीज़ों को देखा जा सकता है। मोदी सरकार पर आरोप लगता है कि वो उद्योगपतियों की सरकार है। उद्योगपति मुकेश अंबानी और गौतम अडानी को उनका करीबी माना जाता है।

नोटबंदी के बाद जब 2017 में विश्व उद्योगपतियों पर फोर्ब्स की लिस्ट सामने आती है तो उसमें पता चलता है कि मुकेश अंबानी कि संपत्ति उस वर्ष 76.3% की वृद्धि हुई और वो विश्व के 20वें सबसे मीर व्यक्ति बन गए। वहीं उनके बाद भारत में सबसे ज़्यादा संपत्ति गौतम अडानी की बढ़ी। उस साल उनकी संपत्ति 40% बढ़ी।

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