फ्रांस के प्रमुख अखबार फ्रांस 24 ने राफ़ेल डील को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं। अखबार ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछा कि आखिर कैसे इस डील से भारत की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को बाहर करते हुए निजी क्षेत्र की रिलायंस डिफेंस को शामिल किया गया?

फ्रांस 24 के मुताबिक, राफेल डील में हुआ एक अहम बदलाव सबको हैरान करने वाला था। भारत में एचएएल के पास रक्षा क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग का 78 साल का तजुर्बा है और वह इस ऑफसेट क्लॉज में एक मात्र कंपनी है जिसके पक्ष में फैसला किया जाता।

लेकिन दसॉल्ट ने एचएएल से करार तोड़ते हुए अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप से करार कर लिया। खासबात यह है कि इस वक्त तक रिलायंस के पास रक्षा क्षेत्र की मैन्यूफैक्चरिंग तो दूर उसे एविएशन सेक्टर का भी कोई तजुर्बा नहीं था।

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राफेल डील की शुरुआत 2007 में हुई थी। डील के वक्त भारत का मानना था कि इस डील से भारत सरकार की एरोस्पेस और डिफेंस कंपनी एचएएल की आधुनिक उत्पादन क्षमता में इज़ाफा होगा और वह देश के लिए लड़ाकू विमान बनाने के लिए तैयार हो जाएगी।

फ्रांस 24 ने दावा किया कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट ने जिस भारतीय कंपनी को एचएएल के मुकाबले तरजीह दी उस कंपनी को इस डील से महज़ 15 दिन पहले ही स्थापित किया गया। खासबात यह है कि कंपनी को स्थापित करने की यह तारीख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे से महज 13 दिन पहले की है।

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अखबार ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा में शामिल कारोबारियों में अनिल अंबानी भी मौजूद थे। इसके साथ ही अखबार ने राफ़ेल डील की तुलना बोफोर्स डील से की है।

फ्रांस 24 ने लिखा कि मौजूदा परिस्थिति में साफ है कि राफेल डील भारत के आगामी आम चुनावों में ठीक वही भूमिका अदा कर सकता है जो 1980 के दशक में बोफोर्स डील ने किया था।

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बता दें कि बोफोर्स डील पर विवाद के चलते राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था वहीं इस बार निशाने पर मोदी सरकार है।

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