इनदिनों दंगों में जितनी महत्वपूर्ण भूमिका राजनेताओं के बयानों की हो गई उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका कुछ गिने पत्रकारों और मीडिया घरानों की भी हो गई है।

जेएनयू में देशविरोध नारों से चौतरफा घमासान मचा था। मीडिया दिन रात फर्जी वीडियो बनाकर पैकेज लिख रहा था।

छात्र नेताओं को नसीहत बांट रहा था। देश में नफरत और हिंसा का माहौल तैयार कर रहा था।

सच यह था कि मीडिया उस वक्त जेएनयू छात्रों के प्रति देश में घृणा का माहौल तैयार कर रहा था।

लेकिन समय बीत गया। कन्हैया कुमार सहित तमाम छात्र जिनकी उम्र पढ़ने-लिखने कलम पकड़ने की थी। उन्हें जेल जाना पड़ा। हाथों में हथकड़ी झेलनी पड़ी।

दिल्ली पुलिस ने करीब दो साल बाद भी चार्जशीट दाखिल नहीं की है। जिन्हें वीडियो देखकर देश का गद्दार बोला गया वो आज बाहर हैं।

मीडिया अपने कार्यक्रमों में बुला रहा है लेकिन जब यह मामला हुआ था तब देशद्रोही बोल रहा था।

कुछ एक ऐसा ही फर्जी वीडियो अररिया से चला है जो दिल्ली के मीडिया संस्थानों के लिए बिना जांच-तथ्य जाने खबर बनाकर नफरत बांटने का मौका बन चुका है।

बिना तथ्यों को परखे मीडिया भाजपा नेताओं की तरह नफरत फैला रहा है। इस वीडियो को आल्ट न्यूज ने फर्जी करार दिया है।

जिसतरह जेएनयू मामले में आया वीडियो भी फर्जी निकला था। वैसे ही अररिया विवाद बढ़ा वीडियो भी फर्जी बताया जा रहा है।

मोदी सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह ने अररिया लोकसभा उपचुनाव हारने पर विवादित बयान दिया था। उन्होंने अररिया को जिहादियों और आतंकवादियों का गढ़ बताया था।

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