आज यानी 10 अप्रैल को आरक्षण विरोधी संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। कई राज्यों से हिंसा की भी खबर आ रही है। आरक्षण का विरोध करने वालों का तर्क है कि आरक्षण जाति के हिसाब से नहीं बल्कि आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को मिलना चाहिए ताकि हर वर्ग के लोग समाज की मुख्यधारा में आ सके। हालांकि ये तर्क बहुत ही स्वार्थी है।

आरक्षण पर वमर्श जारी है और इस बीच संसद में पेश कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय ने कुछ आंकड़ें पेश किए हैं। ये आकड़े आरक्षण विरोधियों के सामने बेहद गंभीर सवाल खड़ा करते हैं, जिसका जवाब शायद वो नहीं दे पाएंगे।

केंद्र सरकार में रक्षा, डाक, वित्तीय सेवाएं, रेलवे, मानव संसाधन विकास, गृह मंत्रालय, शहरी विकास समेत 10 मंत्रालयों एवं विभागों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 28,713 पद रिक्त है। इन पदों को रिक्त क्यों रखा गया है? क्या इन पदों को रिक्त रखने के पीछे कोई जातिवादी मानसिकता है?

अभी जिन मंत्रालयों/विभागों रिक्त पदों की संख्या 28,713 वो दिसंबर 2016 तक 92,589 थी। इनमें से 63,876 रिक्तियों को भरा गया। क्यों भरा गया?

2016 के बाद इन रिक्त पदों को भरने में इसलिए तेजी दिखाई गई क्योंकि तमाम राजनीतिक और एवं दलित संगठन सड़कों पर उतर चुके थे, अब भी सड़कों पर ही हैं। मांग आज भी जारी है कि सरकारी विभागों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के रिक्त पदों जल्दी से जल्दी भरा जाए।

भाषा में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2017 को डाक विभाग में अनुसूचित जाति वर्ग में 301 पद रिक्त थे, जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 718 पद और अन्य पिछड़ा वर्ग में 484 पद रिक्त थे।

रक्षा मंत्रालय में अनुसूचित जाति वर्ग में 399 पद रिक्त थे, जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 366 पद और अन्य पिछड़ा वर्ग में 1268 पद रिक्त थे।

रेलवे में अनुसूचित जाति वर्ग में 145 पद रिक्त थे, जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 324 पद और अन्य पिछड़ा वर्ग में दस पद रिक्त थे।

गृह मंत्रालय में अनुसूचित जाति वर्ग में 3198 पद रिक्त थे जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 2230 पद और अन्य पिछड़ा वर्ग में 5120 पद रिक्त थे।

जिन्हें लगता है कि आरक्षण की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिल रही, उन्हें इन आकड़ों और तर्क को ध्यान से पढ़ना चाहिए चाहिए। भारत में SC/ST/OBC आरक्षण जो संविधान देता है वो पूरी तरह से सिर्फ सरकारी संस्थानों में ही लागू होता है।

मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक, 2% रोजगार ही सरकारी नौकरियां सृजित करती है वही 34% निजी क्षेत्र और 56% कृषि रोजगार सृजित करती है, बचे 8 % अन्य क्षेत्रों में। यानी सरकारी नौकरियां सबसे सबसे कम है। ज्यादा रोजगार निजी क्षेत्र और कृषि में है। निजी क्षेत्रों पर पूरी तरह सवर्णों का कब्जा है तो वहां ऊंचे पदों पर SC/ST/OBC को नौकरी मिलना आसान नहीं। कृषि के लिए दलितों, आदिवासियों के पास जमीन नहीं है।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू है तो जाहिर सी बात है इस क्षेत्र में SC/ST/OBC के लोग अच्छी संख्या में होंगे। लेकिन यहां भी निर्णायक पदों पर बैठे जातिवादी मानसिकता के लोगों का खेल चल रहा है।

कार्मिक एवं लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 77 मंत्रालयों से संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जनवरी 2016 तक केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में SC/ST और OBC का प्रतिनिधित्व क्रमश: 17.49 प्रतिशत, 8.47 प्रतिशत और 21.5 प्रतिशत है।

यानी भारत सरकार के 77 मंत्रालयो में SC 17.49 प्रतिशत, ST 8.47 प्रतिशत, और OBC 21.5 प्रतिशत है। ये कैसे संभव है कि SC/ST/OBC को आरक्षण मिलने के बाद भी उनका प्रतिनिधित्व कम और सवर्णों की ज्यादा है?

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