राफेल डील पर रिलायंस डिफेन्स के दावों की पोल खुल गई है। इस बार पता ये लगाया गया की आखिर उस फैक्ट्री में कितने लोग काम करते है जहां राफेल को बनाया जाना है।
इस मामले पर अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टरों ने रिपोर्ट की जिसमें पता लगा की कैसे देश को अंधेरें में रखते हुए करोड़ों का कॉन्ट्रैक्ट ऐसे ही दे दिया गया और रिलायंस को ये ठेका देकर मोदी सरकार एयरफोर्स के जवानों की जान भी खतरें में डाल रही है।
दरअसल रिपोर्टरों ने नागपुर में डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड के फैक्ट्री का दौरा किया। जिसमें उन्होंने पाया कि फैक्ट्री में काम चल रहा था और वहां पर काम करने वाले कर्मचारी की संख्या सिर्फ 8 से 10 की है। अख़बार के मुताबिक, वहां राफेल को लेकर अभी कोई काम शुरू नहीं हुआ है।
मोदी सरकार के मंत्रियों ने लगातार अंबानी की कंपनी की तरफदारी करते हुए रोजगार देने की बात कही थी मगर वहां काम करने वालों की संख्या की कई सवाल खड़े करते है। करीब 10 हज़ार वर्गफूट में बनी डसॉल्ट रिलायंस एविएशन लिमिटेड ने फैक्ट्री में सिर्फ 50 कर्मचारी तैनात किये है मगर इस जब रिपोर्टर वहां पहुंचे तो वहां काम सिर्फ 10 लोग ही कर रहे थे।
रिलायंस से पहले वर्कप्लेस पर वर्कप्लेस पर डसॉल्ट के बिजनस जेट फॉल्कन की नोज कोन बनाई जा रही है। क्योकि डसॉल्ट ही राफेल फाइटर जेट बनाती है। अभी फ़िलहाल वहां फ्रांसीसी कर्मचारी भारतीयों को ट्रेनिंग जेट बनाने की ट्रेनिंग दे रहें है।
इससे पहले वाणिज्य मंत्रालय ने मिहान एसईजेड में दो और यूनिट लगाने की अनुमति दी है। इसमें रिलायंस-थालेस जॉइंट वेंचर और रिलायंस कंपोनेंट्स शामिल हैं। उन्होंने बताया कि थालेस फ्रांसीसी बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसकी योजना नागपुर में रेडॉर टेस्टिंग यूनिट लगाने की है।
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि मिहान एसईजेड बनवाने का विचार अंबानी पहले ही कर चुके थे। इसलिए सरकार ने रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड डील को राफेल का ठेका मिलने से पहले ही साल 2015 में ये ज़मीन दे दी थी।
अख़बार के मुताबिक, जैसे ही फ्रांसीसी टीम भारतीय कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे देगी नागपुर में विमानों के कलपुर्जे बनाना शुरू हो जायेंगें। डसॉल्ट के लिए वास्तविक सप्लाई अगले साल से शुरू हो सकती है।
क्योंकि रिलायंस को पहले से ही बिना किसी अनुभव के सैन्य विमानों के कलपुर्जे बनने की अनुमति प्राप्त है, इसलिए नागपुर में जल्द राफेल के कलपुर्जे भी बनना शुरू हो जायेंगें।
सवाल फिर से वही है जब देश में पहले से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड जैसे संस्थान थे तो मोदी सरकार ने रिलायंस को राफेल का ठेका क्यों दिया ?
क्या फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति की बात सही थी कि मोदी सरकार ने रिलायंस के अलावा किसी और संस्थान का विकल्प ही नहीं दिया था ?
आखिर ये भी सवाल उठाना चाहिए कि क्या फ़्रांस अगले साल से राफेल विमान की डिलीवरी शुरू कर देगा ?
क्या एक साल में राफेल लड़ाकू विमान के कलपुर्जे बनाना सीख चुके होंगें?
सवाल ये भी उठता है कि जिस कंपनी के पास अनुभव नहीं उसे इतना बड़ा कॉन्ट्रैक्ट देने से पहले क्या मोदी सरकार ने विमान को उड़ाने वाले एयरफ़ोर्स के जवानों की परवाह नहीं?
अगर कलपुर्जे सही नहीं बनते है तो विमान को खतरा भी हो सकता और विमान दुर्घटना का सामान भी कर सकता है।
क्या है विवाद?
राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।
बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10।2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।