दिल्ली-एनसीआर को मेट्रोपोलिटन कहा जाता है। इसीलिए ही नहीं की यहाँ मेट्रो है, भागती दौड़ती ज़िंदगी है या देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले ये ज़्यादा विकसित है। बल्कि इसलिए भी कि इस शहर को ऐसे क्षेत्र के रूप में देखा जाता है जहाँ साम्प्रदायिक या जातिवादी दंगे 90 के दौर के बाद न की बराबर हुए हैं। उस तरह का कट्टर माहौल भी यहाँ नहीं है। लेकिन अब यहाँ भी उस ज़हर को बोने की कोशिश हो रही है।

नॉएडा में रविवार को ईस्टर के पर्व पर बजरंग दल के लोग सड़क पर खुलेआम तलवारों और अन्य हथियारों की नुमाइश करते नज़र आए। वैसे तो भारत को हिंसा और उसके प्रतीकों से सख्त नफरत करने वाले महात्मा गाँधी का देश कहा जाता है। लेकिन आज हमारे देश में तलवार, हथियार और भगवा देशभक्त होने का नया प्रमाणपत्र बनते जा रहे हैं।

इस तरह की चीज़ों से क्षेत्र में रह रहे लोग खासकर इसाई समुदाय के डरेंगे या नहीं, नई पीढ़ी पर इसका क्या असर होगा, इससे इन तलवार लेकर घुमाने वालों को कोई मतलब नहीं है। तो अगर कल आपका बच्चे के बेग में आपको तलवार मिले या अखबार में उसका फोटो या दंगा करने वालों के साथ एफआईआर में नाम आए, तो समझ जाना की इसकी शुरुआत कहाँ से हुई होगी|

उसी समय नोएडा में एक स्वतंत्र पत्रकार नीलांजना भौमिक जा रही थी। उन्होंने अपने इस अनुभव को फेसबुक पर लिखते हुए वाजिब सवाल उठाया है। इस तरह की चीज़ों से लोगों पर क्या असर पड़ता है और क्या सन्देश जाता है ये इसका अच्छा उदाहरण है।

उन्होंने लिखा कि बजरंग दल के गुंडे पूरे नॉएडा में तलवारे और हथियार दिखाते घूम रहे हैं। उनमें से एक मेरी कैब की ओर आया और विंडो पर खटखटाने लगा। मेरा कैब ड्राईवर जो कि एक मुस्लिम था ये सब देखकर बहुत डर गया। उसने मुझे वापस पीछे चलने और हो सके तो कोई दूसरी कैब लेने के लिए कहा। मैंने उसकी बात मानली।

नीलांजना सवाल उठाते हुए कहती है कि क्या अब हम अबसे इस देश में इसी तरह के डर के साये में रहेंगे? उन्होंने पुलिस प्रशासन पर सवाल उठाते हुए लिखा कि ये लोग इस तरह हथियारों की नुमाईश खुलेआम कर रहे हैं लेकिन मुझे कोई भी पुलिस की गाड़ी नहीं दिख रही है। बल्कि मैंने एक पुलिसकर्मी को इनके साथ खड़े हस्ते हुए देखा।

उन्होंने पुछा कि क्या ये तथाकथित हिन्दू ताकत इसलिए दिखाई जा रही है क्योंकि आज ईस्टर है? आसनसोल (पश्चिम बंगाल) से जो तस्वीरें आ रही हैं क्या उससे हमें चिंतित होना चाहिए? या फिर नहीं?

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