रोस्टर एक तरीका है, जिससे यह निर्धारित होता है कि किसी विभाग में निकलने वाला कौनसा पद आरक्षित वर्ग को दिया जाएगा और कौन सा सामान्य वर्ग को।
दरअसल, संविधान निर्माताओं नें भले ही1950 में ही SC/ST को रिजर्वेशन प्रदान कर दिया गया था।लेकिन वह रिजर्वेशन न्याय संगत तरीके से कैसे लागू किया जाये, इसको लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय समेत देशभर के विश्वविद्यालय आज़ादी के पचास वर्ष तक सत्तापक्ष की मिली भगत से काफी अड़ंगेबाजी करते रहे? पहले तो ये विश्वविद्यालय आरक्षण लागू करने से ही साफ मना करते रहे, लेकिन जब सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी दबाव बना तो इन विश्वविद्यालयों नें रिज़र्वेशन लागू करने की हामी तो भरी लेकिन दो चालबाजी कर दी।
पहली, विभाग को रिज़र्वेशन लागू करने के लिए एक यूनिट बना दिया, और विभागों को छोटा-छोटा कर दिया गया, ताकि आरक्षित वर्ग को कम सीटें देनी पड़ें। दूसरा काम यह किया गया कि आरक्षण सिर्फ एसिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ही लागू किया गया, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद पर नहीं।
इन सब का परिणाम यह रहा कि विश्वविद्यालयों में आरक्षण तो लागू हुआ, लेकिन इस प्रकार से जिससे कि SC/ST को न्यूनतम सीटें मिलें। इसका परिणाम यह रहा कि भारत के विश्वविद्यलयों में इन समुदाय के प्रोफेसर लगभग ना के बराबर रहे।
इस बीच 2006 में उच्च शिक्षण संस्थानों में OBC रिज़र्वेशन लागू करने के दौरान विश्वविद्यालय में नियुक्तयों का मामला फिर से सरकार के सामने आया। चूंकि OBC रिज़र्वेशन UPA-1 में लागू हो रहा था, जिसमें RJD, JMM, DMK, PMK जैसी पार्टियों शामिल थीं, इसलिए पुराने खेल की गुंजाइस काफी कम हो गयी थी।
केंद्र सरकार के निर्देश पर UGC ने तब जेएनयू के वैज्ञानिक प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में रिज़र्वेशन लागू करने के लिए एक तरीका बनाने के लिए एक कमेटी बनाई। प्रोफेसर काले कमेटी नें रिज़र्वेशन लागू करने के लिए यह 200 पॉइंट का रोस्टर बनाया।
इस रोस्टर को विभाग स्तर पर लागू ना करके विश्वविद्यालय स्तर पर लागू करने की सिफारिस की, क्योंकि विश्वविद्यालय / कॉलेज एम्प्लोयर होता है, ना कि उसका विभाग। इस 200 पॉइंट रोस्टर के अनुसार यदि किसी विश्वविद्यालय एसिस्टेंट प्रोफेसर के लिए वैकेन्सी आती है, तो पहला, दूसरा, तीसरा, पाँचवाँ, छठा आदि पद सभी वर्ग के लिए ओपेन होगा, जबकि चौथा, आठवा, बारहवाँ आदि OBC के लिए, सातवाँ, पंद्रहवाँ आदि SC के लिए और चौदहवाँ, आट्ठाइसवां आदि पद ST के लिए आरक्षित होगा।
इस रोस्टर को लागू करने में लगभग दस साल लग गए, कुछ विश्वविद्यालयों नें तो इसे अभी तक लागू नहीं किया था। इसी बीच केंद्र सरकार की मिलीभगत से इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नें यह आदेश पारित कर दिया कि इस रोस्टर को विश्वविद्यालय / कॉलेज स्तर पर लागू ना करके विभाग स्तर पर लागू किया जाये। अगर रोस्टर विभाग स्तर पर लागू हुआ, तो लगभग मान कर चलिये कि विश्वविद्यालयों में SC/ST का रिज़र्वेशन लगभग समाप्त हो जाएगा।
(जेएनयू के शोधार्थी अरविंद कुमार की फेसबुक वॉल से साभार)
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