चिदंबरम भ्रष्ट हो सकते हैं, चिदंबरम घपलेबाज हो सकते हैं, चिदंबरम भागोड़े भी हो सकते हैं लेकिन इसका ये मतलब क़तई नहीं है कि कोई राष्ट्रीय चैनल उनकी गिरफ़्तारी के घटनाक्रम को दिखाते हुए भाषा की मर्यादाओं को पार कर दे, उनके लिए ‘ 27 घंटे बाद दिखा’ ‘कांग्रेस मुख्यालय से निकला’ ‘अपने घर पहुँचा’ लिखे, जैसे कोई आतंकवादी हो.
हमें चिदंबरम की तमाम बुराइयों का बखान करते वक़्त ये नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोपी चिदंबरम ने देश के गृहमंत्री का पद 26/11 के हमले के हफ़्ते भर के अंदर सम्भाला था. उनके गृहमंत्री बनने के बाद देश में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ. उन्ही के कार्यकाल में NIA की स्थापना हुई.
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जब गृहमंत्रियों के इतिहास की बात होती है तो हमें ये याद रखना चाहिए कि लौहपुरुष पार्ट 2 कहलाने वाले आडवाणी के समय संसद पे हमला और कंधार कांड जैसी घटनाएँ हुईं थीं. देश की सुरक्षा को लेकर चिदंबरम क्या कर चुके हैं इसे समझने के लिए लोगों को ऑपरेशन ब्लैक थंडर के बारे में भी जानना चाहिए.
33 साल पहले 1986 में स्वर्ण मंदिर पर ख़ालिस्तानी आतंकियों ने क़ब्ज़ा जमा लिया था तब युवा चिदंबरम देश के गृहराज्य मंत्री थे, पूरा देश ये सोच रहा था कि अगर स्वर्ण मंदिर में ऐक्शन लिया गया तो 1984 के ब्लू स्टार की तरह देश में बवाल मच सकता है लेकिन ये चिदंबरम की सूझबूझ ही थी कि बिना किसी ख़ून ख़राबे के स्वर्ण मंदिर 1986 में आतंकियों के क़ब्ज़े से आज़ाद हो गया. ये वही ऑपरेशन ब्लैक थंडर था जिसमें हिस्सा लेकर वर्तमान NSA अजीत डोभाल स्टार बने थे.
मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहती हूँ कि चिदंबरम भ्रष्ट हैं कि नहीं इसका फ़ैसला अदालत करेगी लेकिन जब देश के राष्ट्रीय चैनल उनकी ख़बर दिखायें तो भाषा का इस्तेमाल करते वक़्त उनके ताज़ा भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ अतीत में किए योगदान को भी याद कर लें, कम से कम अभद्र भाषा का इस्तेमाल ना करें.
Dhikkar hai, national media par akhir wo bhi desh ke grah mantri rah chuke hain. Sharm aani chahiye. Aisi bhasha news chanellon ke liye uchit nahin hai.