भारत संवैधानिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष देश है। लेकिन वर्तमान में इसके प्रशासन का भगवाकरण किया जा रहा है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पुलिस ने कैदियों से ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाएं हैं।

दरअसल, 2016 में कथित आतंकवादी संगठन सिमी के कुछ लोग भोपाल जेल तोड़कर भाग गए थे। उस दौरान उनका एनकाउंटर भी हो गया था। एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की इसके बाद जेल अधिकारीयों ने जेल में बचे हुए सिमी के लोगों से अमानवीय बर्ताव किया। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है।

रिपोर्ट में बतया गया है कि सिमी के लोगों को बुरी तरह मारा गया। उन्हें खाना नहीं दिया गया। सोने नहीं दिया गया। उन्हें उनके परिवार वाले और वकील तक से नहीं मिलने दिया गया। उनसे ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाए गए और यहाँ तक की उनके सामने इस्लाम धर्म की पवित्र किताब ‘कुरान’ को फेंका गया। हालाँकि जेल प्रशासन ने इन आरोपों को नकार दिया है।

इस बात का पता चलने के बाद एनएचआरसी ने जून 2017 में भोपाल जेल एक टीम भेजी। ये टीम दिसम्बर में भी दोबारा जेल गई। इस दौरान एनएचआरसी के कार्यकर्ता उन कैदियों से मिले। इसी के बाद एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट पेश की।

कैदियों के साथ पुलिस का ये अमानवीय बर्ताव कोई नई बात नहीं है। हमेशा से इसे लेकर सवाल उठते रहे हैं। अगर इस तरह का व्यवहार कैदियों से किया जाएगा तो क्या भविष्य में उनके सुधरने की सम्भावना जताई जा सकती है? कैदियों का भागना पुलिस और प्रशासन की कमज़ोरी दिखाता है इसकी सज़ा जेल के कैदियों को क्यों दी जाए?

सबसे बड़ा सवाल, सिमी के ही लोगों से ‘जय श्री राम’ के नारे क्यों लगवाए गए? क्या ‘जय श्री राम’ कहना राष्ट्र के प्रति आपकी देशभक्ति साबित करता है? क्या जय श्री राम कहने वाला आतंकवादी नहीं हो सकता?

ये किस तरह का सांप्रदायिक रवैय्या है जो भोपाल की पुलिस अपना रही है। देश का संविधान भी इसे गलत ठहरता है। क्या अब हम ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं कि जब हम सिर्फ एक विशिष्ट नारा लगाकर संविधान की मूल प्रस्तावना के खिलाफ भी जा सकते हैं? ये देशभक्ति है या धार्मिक भक्ति?

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