एक हैं वरुण ग्रोवर और एक हैं एमजे अकबर। वरुण ग्रोवर कॉमेडियन, राइटर और लिरिस्ट हैं। हाल ही में उन्होंने सुपर हिट वेब सीरीज ‘सैक्रेड गेम्स’ लिखी है।

एमजे अकबर पूर्व पत्रकार हैं। कई नामचीन मीडिया संस्थानों में लंबे समय तक संपादक रहे हैं। अब बीजेपी नेता हैं। विदेश राज्य मंत्री थे लेकिन आरोप लगने के कई दिनों बाद अब इस्तीफा दे दिया।

वरुण ग्रोवर पर ट्विटर के माध्यम से एक अनाम महिला ने हैरेसमेंट का आरोप लगाया है। उस ट्वीट में दावा किया गया कि कॉलेज के दिनों में वरुण ने अपनी कथित जूनियर युवती का उत्पीड़न किया।

एमजे अकबर पर अब तक 16 महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं पत्रकार हैं। एमजे अकबर पर आरोप है कि उन्होंने संपादक रहते हुए इन महिला पत्रकारों का यौन उत्पीड़न किया है।

किसी का आरोप है कि अकबर ने उनका ब्रेस्ट दबाया, किसा आरोप है कि ब्रा का स्ट्रैप खींचा, किसा का आरोप है जबरदस्ती किस किया और मुंह में जीभ डाल दी, किसा का आरोप है नितंबों को दबाया, किसी का आरोप है कि पीछे से पकड़ा… आदि। अकबर पर लगे आरोप की लिस्ट बहुत लंबी है।

आरोप लगाने वाली सभी महिलाएं मीडिया में खुलकर अपनी बात रख रही हैं। अपनी बात पर अब भी कायम हैं। एक को छोड़कर कोई भी अनाम नहीं है।

वरुण ग्रोवर ने अपने ऊपर लगे आरोप खंडब बहुत ही विस्तार और सूझबूझ के साथ की हैं। उन्होंने अपनी सफाई में ट्विटर पर ‘सत्य का आग्रह’ नाम से एक खुला खत साझा किया। वरुण ने #MeToo को इंकलाब, शक्तिशाली और बेहद ज़रूरी अभियान बताया है। वरुण ने सिर्फ अपने ऊपर लगे आरोप को तर्कों और तथ्यों के साथ बेबुनियाद बताया है।

वरुण ने तमाम तथ्यों और तर्कों को सामने रखने के बाद लिख है ‘मेरे शुभचिंतक लगातार सलाह देते रहे कि मुझे समाधान के लिए कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए, लेकिन मैं इस अभियान का और इसके सिपाहियों का सम्मान करता हूँ। मैं उन तमाम महिलाओं का तहेदिल से सम्मान करता हूँ जो आवाज़ उठा रही हैं। और नहीं चाहता कि मेरी वजह से अभियान पर ज़रा सी भी आँच आए।’

वरुण पर पीड़ित महिला के तरफ से किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है। लेकिन फिर भी वरुण ने निवेदन करते हुए लिखा है कि ‘मेरा निवेदन है कि अगर अब भी किसी के मन में शक है, तो वह ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ (NCW) या किसी भी अन्य स्वतंत्र जाँचकर्ता समिति में औपचारिक शिकायत करे। मैं खुशी-खुशी अपना पक्ष रखूँगा’

एमजे अकबर पहले तो बहुत दिनों तक चुप रहें। फिर जब वो नाइजीरिया दौरे से भारत लौटे तो एक प्रेस रिलीज़ जारी किया। इस प्रेस रिलीज में अकबर ने तमाम आरोपों बिना कोई तर्क दिए खारिज कर दिया। और #MeToo अभियान को एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा माना।

अकबर ने क़ानूनी रास्ता अपनाने की धमकी देते हुए लिखा ‘झूठ के पाँव नहीं होते हैं लेकिन उनमें ज़हर होता है जिससे दौरे पड़ने लग सकते हैं। उन्माद फैल सकता है। यह बहुत निराशाजनक है। मैं उचित क़ानूनी कार्रवाई करूँगा।

कुछ तबक़ों में बिना सबूत के आरोप लगाना वायरल फीवर बन गया है। जो भी मामला हो, मैं वापस आ गया हूँ, मेरे वकील इन बेबुनियाद आरोपों को देखेंगे और क़ानूनी कार्रवाई का रास्ता तय करेंगे।

आम चुनावों से कुछ महीने पहले ये तूफ़ान क्यों खड़ा किया गया है? क्या कोई एजेंडा है? ये सब झूठ है। मेरी प्रतिष्ठा और नेकनामी को अपूरणीय क्षति पहुँची है’

अकबर ने अपने ऊपर लगे आरोपों को एजेंडा तो बता दिया लेकिन ये नहीं बताया कि महिलाएं उनके खिलाफ षडयंत्र क्यों रचेंगी? इससे उनको क्या राजनीतिक लाभ मिलेगा? विभिन्न क्षेत्रों की और हस्तियों पर भी तो तमाम महिलाओं ने आरोप लगाया है।

ख़ैर, एमजे अकबर ने अपनी रसूख का दंभ दिखाते हुए एक महिला पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ 97 वकीलों की फौज खड़ी की है। सोमवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में अकबर ने अपने वकीलों ज़रिए आपराधिक मानहानि की धारा IPC 499, 500 के तहत केस दर्ज कराया। एक महिला पत्रकार के आरोप के खिलाफ 97 वकील हतप्रभ करता है।

क्या अकबर ने अपने इस कदम से ये संदेश दिया है कि सरकार के लोगों के खिलाफ #MeToo लिखना महंगा पड़ सकता है? क्या अकबर ने उन सभी ताकतवर लोगों को रास्ता दिखाया है जिनपर #MeToo अभियान के तहत आरोप लगा है?

जी हां, अकबर के दिखाए रास्ते पर अब दूसरे आरोपियों ने चलना शुरू भी कर दिया है। ‘संस्कारी’ आलोकनाथ ने भी पीड़िता को अदालत में घसीट लिया है। पहले बैकफूट पर जा चुके चेतन भगत अब खुलकर अपना बचाव कर रहे हैं।

अकबर ने अपने 97 वकीलों की फौज के दम अन्य तमाम ताकतवर लोगों को सुझाव दिया है कि अपने बचाव में पीड़िताओं की न्यायिक लिंचिग की जा सकती है। एक महिला पत्रकार के खिलाफ 97 वकीलों की फौज न्यायिक लिंचिग नहीं तो और क्या है?

क्या अकबर भी वो रास्ता नहीं अपना सकते थे जो वरुण ग्रोवर ने अपनाया? अगर अकबर सही हैं तो उन्होंने स्वतंत्र जांच की मांग क्यों नहीं की? वकीलों की फौज दिखाकर पीड़िता को डराना क्या समझा जाए?

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