भारतीय मीडिया की भूमिका दिन-प्रतिदिन सवालों के घेरे में आती जा रही है। भ्रष्टाचार, घोटाला, गंभीर अपराधों को लेकर भारतीय मीडिया का रिपोर्ट ना करना। उद्योगपति और सत्तापक्ष को बचाने के लिए महत्वहीन खबरों को न्यूज़ चैनल और समाचार पत्र जगह दे रहे हैं।

हीरा कारोबारी जतिन मेहता का बैंक घोटाला मामला भी कुछ ऐसा ही है। इस मामले को गल्फ मीडिया ने भी अपने यहाँ जगह दी। बल्कि मामले की जांच पड़ताल भी की लेकिन भारतीय मीडिया ने ऐसा कारना ज़रूरी नहीं समझा।

इज़राइल की एक पत्रिका डायमंड इंटेलिजेंस ब्रीफ्स (डीआईबी) ने इस मामले में पड़ताल की। पत्रिका के एडिटर ज़ोहर ने इस बैंक घोटाले की पड़ताल करते हुए कई देशों की यात्राएं की। उन्होंने जतिन मेहता की कंपनी के डायरेक्टर रमेश पारिख से भी मामले में बातचीत की।

2016 में इस घोटाले को लेकर डायमंड इंटेलिजेंस ब्रीफ्स ने एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की जिसमें बताया गया कि ये मनी-लॉन्डरिंग यानि की कालेधन को सफेद करने का मामला है। उसके बाद भी ना तो भारतीय जांच एजंसियों ने, ना ही भारतीय मीडिया ने इस घोटाले पर तवज्जो दी।

गौरतलब है कि 2016 में ही मामले का आरोपी जतिन मेहता देश छोड़कर भाग गया।

डीआईबी पत्रिका की पड़ताल रिपोर्ट इतनी प्रभावी थी कि उसे जतिन मेहता की कंपनी की ओर से धमकियाँ मिलने लगी। इस सब के बाद 2017 में ज़ोहर को पत्रिका को छोड़ना पड़ गया।

क्या है मामला

जतिन मेहता का हीरा कारोबार ज़्यादातर दुबई से था। वो अक्सर अपनी कंपनी विन्सम डायमंड्स, फॉरएवर प्रिशियस ज्वेलरी, सूरज डायमंड्स के फेवर में बैंकों से लेटर और अंडरस्टैंडिंग (LOUs) लेता था। LOUs एक गेरेंटी होती है जिसे कोई भी बैंक किसी कंपनी के समर्थन में किसी अंतर्राष्ट्रीय बैंक को देता है। अगर वो कंपनी पैसा नहीं चुका पाई तो LOU देने वाला बैंक उसकी जगह अंतर्राष्ट्रीय बैंक को पैसा देगा। इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय बैंक कंपनी को लोन देते हैं।

बैंकों का विन्सम डायमंड्स पर 4,366 करोड़ रुपये का बकाया है। 1932 करोड़ का बकाया फॉरएवर प्रिशियास ज्वेलरी पर और 283 करोड़ रुपये का सूरज डायमंड्स पर।

मेहता ने 2012 में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। उसने कहा कि वो दुबई की जिन कंपनियों के साथ बिज़नस कर रहा था उन्हें एक बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। इसलिए उन कंपनियों ने मेहता का पैसा नहीं चुकाया है। इस सब के बाद महता 2016 में देश छोड़कर भाग गया।

इस सब के बीच 2015 में मेहता ने दुबई में अपनी बिज़नस पार्टनर कंपनियों पर ये आरोप लगाया कि उन्होंने उसका पैसा वापस नहीं करा है। मामला जब आगे बढ़ा तो जांच में पता चला कि दुबई की जिन कंपनियों के साथ मेहता अपना बिज़नस दिखा रहा था और नुकसान की बात कर रहा था उन कंपनियों में मेहता की भी हिस्सेदारी है। उसी के बाद मेहता देश छोड़कर भाग गया।

उनमें से कुछ कम्पनियाँ तो केवल कागज़ातों पर थी। मतलब ये मामला ऐसे था कि बैंकों से नकली कारोबार के आधार पर लोन लेना। फिर कारोबार को दिवालिया घोषित कर देना और बैंकों के लोन का पैसा खुद खा लेना।

सरकार पर सवाल ये उठता है कि 2012 से ही इस बात पर चर्चा हो रही थी कि महता की कहानी के पीछे कोई षड्यन्त्र है। उसके बावजूद सरकारी एजंसियों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

फिर कैसे 2016 में महता को भाग जाने दिया गया। मेहता के भाग जाने के बाद तीन बैंकों के कहने पर 2017 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। लेकिन मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं की गई है।

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