गौतम अडानी को फायदा पहुँचाने के चलते मोदी सरकार हमेशा से सवालों में घिरती रही है। ये आरोप लगते रहे हैं कि भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें गौतम अडानी को फायदा पहुँचाने में लगी हैं।

अब भाजपा की गुजरात सरकार अडानी के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई है।

वैसे तो सरकार का काम जनता के कल्याण के लिए कार्य करना और विधानसभा से लेकर संसद तक में उनका पक्ष रखना होता है लेकिन गुजरात सरकार अपने राज्य के निजी बिजली कंपनियों अडानी पावर, टाटा पावर और एसार पावर का पक्ष रखने सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई है।

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सरकार का कहना है कि ये तीनों कम्पनियाँ घाटे में चल रही हैं इसलिए इन्हें बिजली के दाम बढ़ाने की अनुमति दे दी जाए। ये बात सरकार तब कह रही है जब सुप्रीम कोर्ट अपने अप्रैल 2017 के फैसले में पहले भी इस अनुमति के लिए मना कर चुका है।

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दरअसल, ये तीनों कंपनियां वर्ष 2010 के समझौते के अंतर्गत राज्य में बिजली दे रही हैं। ये समझौता गुजरात सरकार और इन बिजली कंपनियों के बीच हुआ था।

समझौते के मुताबिक, बिजली कंपनियों को 10 साल तक राज्य में बिजली देनी थी और उस बीच वो कीमत एक तय सीमा से ज़्यादा नहीं बढ़ा सकती हैं।

लेकिन अब इन कंपनियों का कहना है कि वो बिजली बनाने के लिए कोयला इंडोनेशिया से लेती हैं और उस कोयले की कीमत बढ़ गई इसलिए उन्हें भी अब बिजली की दरें बढ़ानी होंगी। उनके इसी पक्ष को अब अदालत में गुजरात सरकार पेश कर रही है।

इन कंपनियों पर लगभग 9000 करोड़ रुपिए का कर्ज भी है। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस कर्ज को चुकाने के लिए ये पूरा खेल खेला जा जा रहा है। कर्ज कंपनियों का है और चुकाएगा आम आदमी।

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गुजरात सरकार का कहना है, ‘हाई पावर्ड कमेटी (HPC) की ओर से आयोजित मीटिंग में कंज्यूमर ग्रुप्स ने इस आधार पर आपत्ति जताई थी कि इस माननीय अदालत के फैसले के मद्देनजर कोई भी बदलाव गैर-कानूनी होगा।

इस वजह से अदालत से यह स्पष्टीकरण देने के लिए संपर्क किया गया है कि इस अदालत का फैसला रेगुलेटर की स्वीकृति के साथ संशोधन को नहीं रोकता।’

इसके साथ ही गुजरात सरकार ने बताया है कि अगर इन पावर प्लांट्स से सप्लाई बंद होती है तो उसे 4,805 मेगावॉट पावर की कमी का सामना करना होगा।

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याचिका में कहा गया है, ‘पावर की कमी को पूरा करने के लिए गुजरात की सरकारी पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों ने शॉर्ट टर्म में 4.25-4.50 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली खरीदी है।’

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