देश में अगले साल 2019 के लोकसभा चुनाव हैं। इसी के साथ मोदी सरकार का कार्यकाल भी ख़त्म होने की कगार पर है। ये ऐसा समय है जब मोदी सरकार की सरकार की समीक्षा करी जा सकती है। समीक्षा के लिए यूं तो कई क्षेत्र हैं लेकिन अगर हाल में आए आयत-निर्यात के आंकड़ों को भी देखा जाए तो मोदी सरकार का प्रदर्शन बहुत ख़राब नज़र आता है।

नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014, के लोकसभा चुनाव के समय यूपीए के शासन को देश की बर्बादी का कार्यकाल बताया था। इसलिए उन्होंने वादा किया था कि उनके सत्ता में आने पर देश दिन दोगुनी रात चौगनी तरक्की करेगा। लेकिन यूपीए सरकार के कार्यकाल के मुकाबले उनकी सरकार में देश वर्तमान विकसित अर्थव्यवस्था के मुख्य मानक ‘निर्यात’ में पिछड़ गया है।

यूपीए-2 के कार्यकाल में जहाँ देश को निर्यात क्षेत्र में 136 बिलियन डॉलर यानि लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ था वहीं, मोदी सरकार के कार्यकाल में अबतक देश को निर्यात क्षेत्र में 52 बिलियन डॉलर यानि लगभग 3.5 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है।

यूपीए-2 की सरकार वर्ष 2009 में सत्ता में आई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, तब देश का निर्यात 178 बिलियन डॉलर था। उस समय विश्व के सभी देश 2008 के वित्तीय संकट से भी जूझ रहे थे। भारत भी उन्हीं देशों में से एक था।

इसके बावजूद, वर्ष 2014 तक आते-आते निर्यात के क्षेत्र में देश ने अच्छी तरक्की की। वित्तीय वर्ष 2013-14, में देश का निर्यात 314 बिलियन डॉलर पहुँच गया। पाँच साल के शासन में 136 बिलियन डॉलर का फायदा।

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अब बात करते हैं मोदी सरकार की। नरेंद्र मोदी वर्ष 2014, में भारत के प्रधानमंत्री बन गए थे। वित्तीय वर्ष 2013-14 में, देश का निर्यात 314 बिलियन डॉलर था। ये वित्तीय वर्ष 2014-15 में पहले 1% गिरकर 310 बिलियन डॉलर पर गया। उसके बाद अगले वर्ष यानि 2015-16, में निर्यात में बड़ी गिरावट आई और ये 262 बिलियन डॉलर पर आ गया।

तब से अबतक ये सरकार निर्यात को उस स्तिथि में नहीं ला पाई है जिसमें यूपीए-2 की सरकार छोड़कर गई थी। यानी वित्तीय वर्ष 2017-18, में भी देश का निर्यात 304 बिलियन डॉलर रहा। ये तब है जब डॉलर के मुकाबले रुपये के दाम गिर रहे हैं और निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में दाम ज़्यादा मिल रहे हैं अन्यथा स्तिथि और भी बदतर हो सकती थी।

निर्यात के लिए सबसे ज़रूरी होता है उत्पादन। देश के उत्पादन में नोटबंदी और जीएसटी के बाद से भारी कमी आई है। नोटबंदी के कारण हज़ारों कारखाने बंद हुए और लोग बेरोजगार हुए। जीएसटी लागू होने के बाद निर्यात में भारी गिरावट आई क्योंकि, जीएसटी सिस्टम में निर्यातकों के 90,000 करोड़ रुपए फंस गए थे जिसे सरकार ने धीरे धीरे चुकाया।

इसमें से अभी भी 20,000 करोड़ रुपए जीएसटी सिस्टम में फंसे हुए हैं। इस सब के कारण निर्यातकों के पास बाज़ार में ऑर्डर देने के लिए पैसा नहीं बचा।

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दरअसल, जीएसटी से पहले देश के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात पर कोई टैक्स नहीं था। जीएसटी के बाद ये टैक्स लगाया गया और नियम ये है कि वस्तु के निर्यात होते ही ये टैक्स का पैसा निर्यातकों को वापस मिल जाएगा। लेकिन ये प्रकिर्या इतनी लम्बी हो गई कि महीनों तक निर्यातकों का पैसा सिस्टम में फंसा ही रह गया।

किसी भी देश के विकसित होने के लिए उस देश का निर्यात आयात से ज़्यादा होना ज़रूरी है। क्योंकि, ऐसा होने पर देश खरीदने के बजाए बेचता ज़्यादा है उसे आर्थिक तौर पर फायदा मिलता है। उसके घरेलु बाज़ार में नए व्यवसाय शुरू होते हैं और रोजगार के भी अवसर पैदा होते हैं।

विश्व के सभी विकसित देशों का निर्यात हमेशा ज़्यादा रहता है। लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत निर्यात के क्षेत्र में चार साल पहले जहाँ खड़ा था उस से बहुत नीचे आ गया है।

2 COMMENTS

  1. ये सब झूठ है। हम नहीं मानेंगे। देश इतनी तर्राकी क्रर रहा है। आप मोदी से जलते हैं….. देश द्रोही कहींके। देश में पिछले 65 वर्ष में केवल 65 नए हवाई अड्डे बने थे और इन साढ़े चार सालों में 35 नए हवाई अड्डे बन गए है। अब आप उन नए हवाई अड्डों के नाम पूछ कर मोदी की तौहीन कर रहे हो। नहीं यकीं तो पाकिस्तान चले जाओ।

  2. देश के सर्वोच्य पदों पर अनपढ़ लोग होंगे तो देश का यही हाल होगा। अर्थ व्वस्था कोई पब्लिक मीटिंग नहीं है की कुछ भी ऊलजलूल बोल दो और ताली पिटवालो।

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