ऑइल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) इन दिनों चर्चाओं में बनी हुई है। ओएनजीसी एक सरकारी कंपनी है और देश की सबसे ज़्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी भी।

इसके बावजूद भी पिछले एक साल में इसके कैश रिज़र्व यानि उसके जमा पैसे में 92% की कमी आ गई है। यही कारण है कि इसे लेकर बाज़ार में चर्चाओं का बाज़ार गरम है।

इस कंपनी के मजदूर संगठन ने सितम्बर 2018, में पत्र लिखकर सरकार को इसकी बर्बादी का ज़िम्मेदार ठहराया है। दरअसल, पिछले दो साल में मोदी सरकार ने ओएनजीसी से जिस तरह के निवेश कराए हैं उससे सरकार को अपनी नाकामी छुपाने का मौका मिला है और प्रधानमंत्री मोदी के करीबी उद्योगपति गौतम अडानी को फायदा पहुंचा है।

ओएनजीसी ने पिछले दो सालों में कर्ज़ में डूबे गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम (जीएसपीसी) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में हिस्सेदारी खरीदी है। इन दोनों खरीदारी के लिए सरकार ने ही ओएनजीसी पर जोर डाला। और इस से ओएनजीसी के खजाने को तगड़ा झटका लगा।

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दरअसल, जीएसटी लागू होने के बाद मोदी सरकार ने जिस तरह से टैक्स कलेक्शन बढ़ने का वादा किया था वो हो नहीं पाया। उल्टा नोटबंदी और जीएसटी के कारण हज़ारों व्यवसाय बंद हुए और टैक्स कलेक्शन घट गया।

अब अपनी इस नाकामी छुपाने के लिए सरकार ने एचपीसीएल में अपने शेयर ओएनजीसी को 36,915 करोड़ रुपए में बेच दिए ताकि सरकार चुनावी साल में सही से खर्चा कर सके।

अब बात आती है जीएसपीसी की। ये गुजरात सरकार की एक परियोजना ने जिसे नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते शुरू करा था। इसमें उद्योगपति गौतम अडानी की हिस्सेदारी है। ये परियोजना गुजरात बेसिन में गैस खोजने के लिए शुरू करी गई थी लेकिन गैस तो मिली नही बल्कि इस परियोजना पर बैंकों का 20,000 करोड़ का कर्ज हो गया।

कैग ने आरोप लगाया कि इस परियोजना में जो निजी कंपनियां यानी अडानी समूह ने बैंक से लिए कर्ज का इस्तेमाल कहीं और किया और बाद में परियोजना को बर्बाद दिखा दिया।

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वर्ष 2014, में सत्ता में आने के बाद सरकार ने ओएनजीसी पर दबाव डाला कि वो इस परियोजना में हिस्सेदारी खरीदे ताकि वो कर्ज से बाहर निकल सके।

इसके बाद ओएनजीसी ने इस परियोजना में 8000 करोड़ रुपिए का निवेश किया। अब हाल ये है कि ओएनजीसी जो देश की सबसे ज़्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी अब खुद कर्ज लेने की स्तिथि मी आ गई है।

गुजरात की जीएसपीसी परियोजना के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

कैसे हुई शुरुआत

26 जून 2005 को गांधीनगर में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेस कांफेर्रेंस में घोषणा किया कि गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन GSPC आंध्र प्रदेश के तट पर कृष्णा-गोदावरी बेसिन में गैस निकालेगी।

मोदी ने घोषणा की कि गैस का मूल्य 2 लाख करोड़ रुपए होगा, और यह गुजरात को ‘भारत की आर्थिक महाशक्ति’ बनाने में मदद करेगा।

उन्होंने कहा कि इस खोज से अगले दो दशकों में 10,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की वार्षिक बचत होगी। 75-80 मिलियन मीट्रिक क्यूबिक मीटर (एमएमसीएम) गैस उत्पादन होने का दावा किया गया था।

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उन्होंने कहा, गुजरात सरकार ने इसपर अब तक 250 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, और अब 1,500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करेंगे।

कुछ समय बाद 17 जुलाई 2008 को फिर से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस को बुलाकर घोषणा की कि GSPC द्वारा 2 लाख करोड़ रुपये की नहीं बल्कि 4 लाख करोड़ रुपये की गैस खोजी जा ही है। इस परियोजना में मुकेश अम्बानी और गौतम अडानी जैसे उद्योगपतियों की निजी कंपनियों ने भी साझेधारी की।

घोटाला

ड्रिल करने के लिए लागत का अनुमान 1.2 लाख रुपये लगाया गया था लेकिन ड्रिल की लागत 7.65 लाख रुपये आई। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि प्रोजेक्ट को लेकर सही से योजना नहीं बनाई गई थी। इस प्रोजेक्ट में गैस निकल नहीं रही थी लेकिन उसकी लागत बढ़ती जा रही थी।

गुजरात सरकार ने भारतीय नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की ओर से आपत्ति जताने के बावजूद GSPC को 20 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ दिलाया। आरोप है कि निजी कंपनियों ने इस पैसे का दुरुपयोग किया।

CAG ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी ने लागत, प्रौद्योगिकी और गैस की कीमतों से जुड़े जोखिमों को लेकर ठीक से योजना नहीं बनाई। इसके परिणामस्वरूप इस परियोजना का भविष्य खतरे में पड़ा।

इस बीच, कंपनी की कुल उधारी 2010-11 में 7 हज़ार 126.67 करोड़ रुपये से बढ़कर 2014-15 तक 19 हज़ार 716.27 करोड़ रुपये हो गई, जो 177% की बढ़ोतरी है।

CAG ने अपनी दो गहन रिपोर्टों में कहा है कि GSPC और अन्य निजी कंपनियों के बीच कई लेन-देन में लगातार विसंगतियां दर्ज की गईं, जिनकी वजह से सरकारी खज़ाने को नुकसान हुआ और अनुचित वित्तीय निजी कंपनियों को लाभ। इन निजी कंपनियों में अम्बानी और अडानी की कम्पनियाँ भी शामिल हैं।

सवाल

सवाल ये उठता है कि जब उस मात्रा में गैस मिली ही नहीं जो दावा किया गया था तो पैसा कहाँ गया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस परियोजना पर सवाल उठाते हुए कहा था कि कोई भी कंपनी जब पैसा लेकर काम शुरू करती है तो नया ढांचा बनाती है और कामगारों की संख्या बढ़ाती है। जबकि इस बीच GSPC के बिल ऐसा कुछ नहीं दिखाते की उन्होंने अधिक नये लोगों को नौकरी दी।

जयराम रमेश का आरोप है कि कंपनी को गैस के नाम पर सरकारी बैंकों से पैसा दिलाया गया। उस पैसे का परियोजना में शामिल निजी कंपनियों ने अपने फायदे के लिए प्रयोग किया।

3 COMMENTS

  1. मोदी कुछ एक चंद उद्योगपतियों के लिए ही काम कर रहा है आज देश में ये एक nexus बन चुका है ये तथाकथित मोदी के मित्र देश को लूट रहे हैं बदले में ये मोदी को चुनाव के लिए हज़ारों करोड़ पैसा देंगे इसी तरह गोदी मीडिया मोदी की इन करतूतों को नहीं दिखा रहा है इस तरह से क्रोनी,मीडिया,बैंक,ED और CBI वग़ैरह की मदद से ये चोर लुटेरों का नेक्सस बन गया है जो देश को लूटे जा रहा है आम जनता को हिंदुत्व का धतू₹।पिला दिया गया है

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