जाति को लेकर शर्म और शौर्य भारतीय जनमानस की मानसिकता का हिस्सा है। ये मानसिकता ही समाजिक असमानता का बड़ा कारण है। 21वीं सदी का भारत मंगलग्रह पर जा रहा है, प्लास्टिक मनी का उपयोग कर रहा है, ‘विश्वगुरू’ बनने की दौड़ में शामिल हो रहा है लेकिन अपनी जाति को नहीं छोड़ रहा है।

छोड़ें भी क्यों, जब जनतंत्र का अक्ष ही जाति बन चुका है। पहले शोषण का हथियार जाति था, अब सत्ता की चाभी जाति है। खुद को ‘पिछड़ा’ बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी को भी पता है कि जातिवाद भारत को खंडित कर रहा है। शायद यही वजह है कि उन्होंने 2022 तक भारत से जातिवाद खत्म करने का संकल्प लिया है।

लेकिन इस संकल्प की तिलांजली खुद उनके केन्द्रीय मंत्री ही दे रहे हैं। जी हां, अपने विवादित बयानों के लिए कुख्यात बीजेपी नेता गिरिराज सिंह जातिवाद से एक कदम आगे बढ़कर गोत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। नवादा से सांसद गिरिराज सिंह ने 24 सितंबर को ट्विटर पर अपने नाम के साथ अपना गोत्र भी जोड़ लिया।

गिरिराज सिंह का मानना है कि देश के तमाम सनातनी लोगों को अपने नाम के साथ गोत्र को जोड़ना चाहिए। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है ‘देश बचाने के लिए सनातन को बचाना होगा और सनातन को बचाने के लिए हमें अपने ऋषि मुनि के पथ पे चलना होगा और अपने गोत्र के साथ ख़ुद को जोड़ना होगा।

आज से हम अपना नाम ऋषि शांडिल्य जी के नाम से जोड़ते हुए शांडिल्य गिरिराज सिंह करते है। आप भी सभी सनातनी अपने नाम के साथ अपना गोत्र जोड़ें।’

पहले से ही जातियों में बिखरे भारतीय समाज को गिरिराज सिंह अब गोत्रवाद के माध्यम से विभाजित करना चाहते हैं। जाति और धर्म की राजनीति पर सत्ता की रोटी सेंकेने वाले नेता जनता को मूर्ख समझते हैं। गिरिराज सिंह उन्हीं नेताओं में से हैं।

गिरिराज सिंह को ये बताना चाहिए कि सनातन को बचाने से देश कैसे बचेगा? और सनातन को किससे खतरा है जो उसे बचाने की जरूरत है? अपने नाम के साथ गोत्र जोड़ने से देश कैसे सुरक्षित हो जाएगा? अगर गोत्र से ही देश सुरक्षित होगा तो सैनिकों, डॉक्टरों, किसानों, शिक्षकों आदि की क्या जरूरत है?

इससे भी जरूरी बात ये है कि सनातन के अंतर्गत कौन कौन सी जातियां हैं? क्योंकि गिरिराज सिंह तो सवर्ण हैं इसिलए गोत्र का नाम लिख लिया, लेकिन क्या दलित भी अपना गोत्र लिखने में सहज हैं?

भारत को पाकिस्तान से ज्यादा ‘गिरिराज’ जैसे नफरत फैलाने वाले नेताओं से खतरा है : जीतू पटवारी

एक तरफ पीएम मोदी जातिवाद को खत्म करने की बात करते हैं। दूसरी तरफ गिरिराज सिंह जातिवाद से एक कदम आगे बढ़कर गोत्रवाद को प्रमोट करे रहे हैं। क्या इस तरह 2022 तक जातिवाद को खत्म करेगी मोदी सरकार?

क्या है गिरिराज सिंह के गोत्रवाद की राजनीति?

गिरिराज सिंह सवर्ण हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जाति के भूमिहार हैं। अन्य जातियों की तरह ही भूमिहार में भी कई गोत्र होते हैं। गिरिराज सिंह का गोत्र है शांडिल्य (उन्होंने खुद बताया)।

तो गोत्र उजार करने की जरूरत क्यों पड़ी?

जैसा की हम जानते हैं ‘गिरिराज सिंह शांडिल्य’ पहले अपने नाम के साथ सिर्फ ‘सिंह’ का इस्तेमाल करते थे। ‘सिंह’ सरनेम का इस्तेमाल भूमिहारों के अलावा अन्य कई जातियां भी करती हैं, जैस- राजपूत

ऐसे में गिरिराज सिंह की भूमिहार आइडेंटिटी का सीधा प्रदर्शन नहीं हो पा रहा था। गिरिराज सिंह की हरकतों यानी दलित पिछड़ा और अल्पसंख्यक विरोधी बयानों से की वजह से जनता को ये तो पता था कि वो जातिवादी सवर्ण हैं। लेकिन सवर्ण में भूमिहार हैं ये जानकारी सबको नहीं थी। इसका मतलब ये है कि ‘गिरिराज सिंह शांडिल्य’ अपनी भूमिहार आइडेंटिटी ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करना चाहते हैं।

जब तक सीवर साफ करना एक ‘जाति’ का काम रहेगा, तब तक ‘सफाईकर्मियों’ की मौत होती रहेगी

अब सवाल उठता है कि ‘गिरिराज सिंह शांडिल्य’ अपनी भूमिहार आइडेंटिटी को क्यों प्रचारित करना चाहते हैं?

चुनावी विश्लेषक पिछले एक साल, डेढ़ साल से कयास लगा रहे हैं कि कन्हैया कुमार CPI की टिकट से बिहार की बेगूसराय सीट से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। एक वक्त था जब बेगूसराय जिला को ‘पूरब का लेनिनग्राद’ कहा जाता था।

दरअसल बेगूसराय का इतिहास है कि वहां के भूमिहारों ने वामपंथ का झंडा थामकर ‘जमींदारों’ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जिनके खिलाफ मोर्चा खोला गया था वह भी भूमिहार थे, जिनका लाल मिर्च की खेती में एकाधिकार था। इस आंदलोन ने बेगूसराय को चंद्रशेखर सिंह, सीताराम मिश्रा, राजेंद्र प्रसाद सिंह सरीखे कई वामपंथी भूमिहार नेता दिया।

इसका प्रभाव ये हुआ कि बेगूसराय जिले के कई विधानसभा वमपंथ का गढ़ बन गएं, जैसे बछवारा और तेघड़ा। कन्हैया कुमार तेघड़ा विधानसभा से ही आते हैं। तेघड़ा को आज भी ‘छोटा मॉस्को’ के नाम से जाना जाता है। तेघड़ा विधानसभा पर 1962 से लेकर 2010 का वामपंथी पार्टियों का कब्जा रहा है। लेकिन बेगूसराय यानी ‘पूरब का लेनिनग्राद’ में CPI एक ही लोकसभा चुनाव (1967) जीती है।

तो बेगूसराय का राजनीतिक इतिहास बताता है कि इस लोकसभा में ‘किंग मेकर’ भूमिहार जाति है। और चुनावी विश्लेषकों की माने तो बेगूसराय की सीट से बीजेपी 2019 में ‘गिरिराज सिंह’ सॉरी ‘गिरिराज सिंह शांडिल्य’ को टिकट देने वाली है। यानी बीजेपी वोटों के जातीय समिकरण के आधार पर कन्हैया(भूमिहार) के सामने गिरिराज(भूमिहार) पर दाव खेलना चाहती है।

ऐसे में शायद ‘गिरिराज सिंह शांडिल्य’ चाहते हैं कि उनकी भूमिहार आइडेंटिटी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, और इसका फायदा 2019 लोकसभा चुनाव में मिले। कुल मिलाकर बात ये है कि ये गोत्र कार्ड 2019 के लिए खेली गई है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here